लघुकथा :खानदान की इज्जत ।
लक्ष्मिना डाक्टर क्या बताये, शकुंतला आण्टी पूछी ।
आण्टी कुछ अच्छा नहीं है।
लक्ष्मिना आंसू पोछो । बताओ क्या हुआ ?
आंखो का जल्दी आपरेशन करवाने का डाक्टर बोल रहे है लक्ष्मिना बोली ।
पांच साल से आंसू बहा रही है, क्या मिला ? बहू लौटकर आना तो दूर कभी तो ये भी नहीं पूछी कि तुम लोग कैसे हो ? खुद के लिए अब जीना सीखो लक्ष्मिना तुम्हारी बहू तुम दोनों पति-पत्नी का स्वास्थ्य खा गई ,बेटा तो छिन ही ली है, कभी घर से बेघर भी कर देगी। लक्ष्मिना तुम्हारी उम्र तो आंख खराब होने की नहीं है, तुमने बेटवा के परिवार से दूर जाने के वियोग मे रो-रो कर आंख खराब कर ली हो। रूआंसी सी शकुंतला आण्टी बोली ।
आण्टी मै भी समझती हूँ पर मन है कि मानता नहीं।हमारी बहू पहले इतनी खराब नहीं थी जितनी अब हो गई है। अपने मां-बाप के जम्बो परिवार की परवरिश के लिये खुद के परिवार से दगाबाजी कर रही है लक्ष्मिना बोली।
बेटी के मां-बाप बेटी के घर के पानी पीने से परहेज करते हैं तुम्हारी बहू के कैसे कसाई मां-बाप हैं कि अपनी ही बेटी का घर उजाड़ रहे हैं। दमाद की छाती पर बैठकर फुफकार रहे हैं ।
लक्ष्मिना-आण्टी दुआ करो परमात्मा मेरी बहू को सदबुद्धि दे,हमारा परिवार पहले जैसा संगठित और खुशहाल हो जाये।
तुम्हारी बहू अपने कुसंस्कारी मां- बाप से उत्प्रेरित है। खैर एक दिन बंदरियां मदारी मां-बाप के हण्टर पर नाच-नाच थक जायेगी तब अपने भाई-भौजाई का लात खाकर लौटेगी ।
आण्टी ब्याह कर घर मंदिर की लक्ष्मी लाई थी तब भी स्वागत की थी और जब आई लव माई मदर की दीवानी भाई-भौजाई से बेआबरू होकर वापस आयेगी तब भी स्वागत करूंगी भले ही बहू हमें और हमारे परिवार को बेआबरू कर रही है , है तो हाफमाइण्ड हमारे खा़नदान की इज्ज़त न आण्टी लक्ष्मिना बोली ।
अरे वाह रे लक्ष्मिना, तुम पति-पत्नी का दिल कितना विशाल है। तुम्हारी हर इच्छा पूरी हो,का आशीर्वाद देते हुए आण्टी बोली अब घर चलती हूँ सुलक्षणा चाय लेकर बैठी होगी।
आण्टी आपकी सुलक्षणा जैसी बहू परमात्मा सब को दे लक्ष्मिना चहकती हुई बोली ।
नन्द लाल भारती
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