लघुकथा-दो भाई की जोड़ी/
दो बैल किसी जंगल में रहा करते थे,एक बैल लोमड़ी के जाल में फंस गया और क्रमशः दोनों बैल शेर का शिकार हो गये,जो शेर इनका कुछ नहीं बिगाड़ पाता था। जंगल के पशु-पक्षी सम्मान करते थे। आजकल ठीक ऐसा ही बचे-खुचे संयुक्त परिवारों में आधुनिक शिक्षित सिर्फ डिग्री का घमंड पाले पति को गुमराह कर परिवार को बर्बाद करने वाली बहूयें चौखट पर पांव रखते करने लगी है।
ठीक ऐसा नेक बाबू और नेत बाबू के परिवार में घट हो गया। नेक बाबू कुछ होशियार होते ही परिवार की गरीबी मिटाने के लिए शहर की श्रम की मंडी में कूद पड़ा था। वह बरसों के संघर्षों के बाद नसीब बनाने में कामयाब हो गया। नेत बाबू कुछ नहीं कर पाये,परिणाम स्वरूप उनका और उनके बच्चों को भी अपने बच्चों के साथ पीठ पर लादे नेक बाबू को ढोना पड़ रहा था।
नेत बाबू की घरवाली लोमड़ी के स्वभाव की थी। मायके वालों से उपेक्षित और बार-बार लज्जित होने के बाद भी मायका प्रेम चरम पर रहता था। नेक बाबू अपने हिस्से का सुख भाई और उसके परिवार के बीच बांट रहा था। परिवार के खान-खर्च के बोझ के साथ बच्चों की शिक्षा -दीक्षा का भार उमंग के साथ खुशी-खुशी खुद ढो रहा था ।
लोमड़ी के स्वभाव वाली सीलमजी,मूस-मूस कर भाई भतीजों पर लूटा रहीं थीं।अति तो तब हो गई जब नेत बाबू का बड़ा बेटा आंशिक विभाग में साहब बन गया। नेक बाबू अपने जीवन की कमाई और अपने बच्चों के हिस्से का सुख लूटाने वाली मां समान कौशल्या और पिता समान नेक बाबू को सीलम दूध में गिरी मक्खी तरह चुपचाप निकालने में लग गयी थी।
आंशिक के ब्याह के बाद बहू चीतू ने सांस की नब्ज पकड़ लिया । सास को भड़काने लगी। गोबर से कम कीमत वाली डिग्रीधारी शिक्षित परन्तु कौवे जैसी चालाक बहू चीतू सास से कहती- मम्मी डरती क्यों हो जबाब दिया करो।
कौवे जैसी चतुर बहू की जाल में नई-नई अमीर बनी सीलमजी मौके-बेमौके कौशल्या को खुलेआम बेइज्जत करने लगीं। ऐसा ही सब कुछ नेक बाबू के साथ भी शनै-शनै होने लगा था। चीतू के साथ पति आंशिक, सास-ससुर और इकलौती ननद भी नेक बाबू और कौशल्या के एहसानों को भूलाकर खिलाफत की तलवार लेकर खड़ी हो गई।
आंशिक,सीलम,नेत बाबू और ननद उपासना,चीतू के षणयन्त्र में फंसकर कर सब अपने अपने ढंग से बेइज्जत करने लगे थे। नेक बाबू और नेत बाबू दोनों भाईयों के साथ को जिनका पूरे गांव के लोग सम्मान देते थे। बिखण्डित करने के बाद बढ़िया मौंका पाकर,चीतू तड़पते बूढ़े सास-ससुर को छोड़कर शहर की ओर फ़ुर्र हो गई।
दोनों भाई पेड़ से नदी में गिरे पत्ते की तरह बिखर गये।एक पत्ता यानि नेक बाबू पवित्र नदी की धारा में बहता दूर दूर-बहुत चला गया। नासमझ भाई नेत बाबू नदी के किनारे सड़ रहे तिनके में पुत्र मोह में फंसा तड़पता रह गया।
नन्दलाल भारती
०६/०७/२४
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY