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खुद पर विश्वास कीजिए

 
खुद पर विश्वास कीजिए/नन्दलाल भारती

लोग हैं कि
फरेब की चासनी लपेट कर
झूठ को भी सच साबित कर देते हैं
दगाबाजों की निर्ममता को देखो
मर्यादा का चीरहरण
आदमियत का बलात्कार तक कर देते हैं
ऐसे दगाबाज छिन लेते हैं,
जीवन की ख्वाहिशें, जिन्दगी के सपने
छिन सकते हैं सकूं की सांस भी
कर सकते हैं कैद
आसमान छूने की तमन्ना भी 
बना सकते हैं जिन्दगी
पिंजड़े की पंछी की तरह
आदमी कितना कातिल हो गया है
आदमी को कैद करने की 
फ़िराक़ में जुट रहता हु
ये आदमी क्या कर रहा है ?
झूठ के जहर को ,
संजीवनी की तरह परोस रहा है
कहां दगाबाजों को परवाह ?
आदमी की उड़ान कैद करने की साज़िश रच रहा
शातिरों की खूनी निगाहों को पहचानने का,
हुनर सीख लीजिए
दगाबाजों की निगाहों को पहचान, कर लीजिए 
अमानुष ताक में बैठे हैं
सकूं और सपने क़ैद करने के लिए
शिकारी बहेलिये की तरह
शिकारियों की पहचान कर लीजिए
सपनों को उड़ान दीजिए।
लोग तो है विषधर जाल बिछाये हुए 
अपने अरमानों को जिन्दा रखिये
पूरे होंगे अरमान बस फरेबियों से दूर 
सिला काटती रस्सी की तरह
खुद पर विश्वास कीजिए।

नन्दलाल भारती
११/१२/२०२३

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