लघुकथा : ये आग कब बुझेगी?
भाग्यवान,ये मोती तो क्यों ?
पत्नी तुमको मज़ाक सूझ रहा है। जीवन की कमाई भाई,भतीजा-भतीजी और उनके परिवार पर लूटा दिये। क्या मिला ? जिल्लत और बेइज्जती ?
पगली क्यों दुखी हो रही हो ? तुमने सगे खून के रिश्ते की बिगड़ी दुनिया बनाने के लिए किया है,यह तो जश्न की बात है कैलाश जी मजाकिये अंदाज में बोले।
वाह रे रिश्ते की अंधभक्ति संजीवनी क्रोधित होकर बोली। गुनाह नहीं दिखाई पड़ रहा है क्या?
संजीवनी हमने कोई ग़लत काम तो नहीं किया है। नहीं किसी पराये की दुनिया नहीं। भाई और उसके बेटे संयम की दुनिया सजाये हैं कैलाश जी बोले।
परमेश्वर उपकार गुनाह बन गया है।संयम की उच्च संयम की शिक्षित वाईफ के चौखट पर पांव जमते ही,उसकी मां विषवन्ती दुश्मन बन गये।ये कैसा जादू कर दिया उच्च शिक्षित भूखवन्ती ने हंसते-खेलते दो भाईयों के परिवार में आग लगा दी। ये आग कब बुझेगी ?
कैलाश जी पारीवारिक दीक्षित संजीवनी को समझाते हुए बोले देखो जी ये आग हमारे-तुम्हारे और नहीं भाई भोलेनाथ के हाथ में है। सभी लोग बहू भूखवन्ती की ढोल,सास,रसवन्ती की बांसुरी, बीटिया सगुनी के संगीत पर भोलेनाथजी मंजीरा बजाकर नांच रहे हैं।अफसर बने संयम साहब अपनी कूटनीति पर खुश हैं। पगली मत रो......ढोल थमने में टाईम है, ढोल थमेगी... गंगा -जमुना फूटेगी।
संजीवनी आंचल से बाढ़ रोकते हुए बोली - बेटे जैसे देवरजी के आंसू कैसे देख पाऊंगी । क्या बर्बादी के बाद ये आग बुझेगी ?
नन्दलाल भारती
११/०७/२०२४
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