आदर्श पुरुष
मुकुल के पिता खेतिहर मजदूर थे,आय जरुरत से कम थी। कमाई का दूसरा कोई पुख्ता जरिया नहीं था। उपर से जातिवाद का दंश था जीवन मुश्किलों से लबालब था।
मुकुल को बचपन से आर्थिक और सामाजिक मुश्किलों का भयंकर सामना करना पड़ा था । माता -पिता के आशीर्वाद से और वजीफे की पतवार से स्नातक की परीक्षा पास कर नौकरी की तलाश में शहर की ओर कूच किया। शहर में उसने अपनों को पराया होते देखा। जातिवाद के उत्पीड़न को झेला।
आखिरकार लम्बी बेरोजगारी के बाद एक लिमिटेड कम्पनी में नौकरी मिल गई।
नौकरी तो मिल गई पर नौकरी करना और मुश्किल था। चपरासी से लेकर अधिकारी तक सभी उच्च वर्णिक थे, भेदभाव का नंगा प्रदर्शन होता था।
चपरासी रईस की इज्जत मुकुल को चाय पानी देने में घट जाती थी । कई तो चाय की कप ऐसे पटकता आधी चाय टेबल पर झलक जाती थी। रईस बार-बार विद्रोह करता, फाइलें टेबल पर पटक कर रखता। मुकुल का हर काम करने में रईस का धर्म भ्रष्ट होता । उपर से भी उसे सह मिली हुई थी।
मुकुल था कि उसको तरक्की का जनून था और जातिवादी घटिया सोच वाले रईस को नफ़रत फैलाने का शौक था ।
मुकुल दिन में नौकरी और रात में पढाई करता। अपनी दृढ़ प्रतिज्ञा और अथक परिश्रम से मुकुल उच्च शिक्षित होकर एक दिन साहब बन गया।
मुकुल के भविष्य को बर्बाद करने की बहुत साजिशें रची गई । अन्तोगत्वा जीत सच्चाई और श्रम की हुई यानि मुकुल की हुई।
ईमानदारी से काम करने की आदत, विभाग के प्रति वफादारी से मुकुल को नौकरी में सफलता मिली और पहचान भी। परिश्रम, जीतने के जनून से मिली सफलता ने मुकुल को गांव का आदर्श पुरुष बना दिया।
नन्दलाल भारती
01/06/2023
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