Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

आहवाहन

 

हम सब अपनी -अपनी जहां में
आज़ाद है यारो
असली आज़ादी असली लोकतंत्र से
आज भी दूर है यारो………
अपनी जहां में आज भी
डंसता गुलामी का घाव पुराना
वही जातिवाद -भ्रष्ट्राचार
गरीबी ,नफ़रत-भेद की बेड़ियां
दूर असली आज़ादी का सुख
ना ही पास अभी लगता
असली लोकतंत्र का ज़माना ………
वह भी क्या ………?
गुलाम का दौर रहा होगा
देश की आज़ादी के लिए
आज़ादी की ऐसी ललक
लहू का दरिया बहा होगा ………
जीने नहीं दे रहा होगा
गुलामी के दर्द का आक्रोश
आक्रोश से उठे दर्द ने
जगा दिया था जोश ………
खूब हुए बलिदान
आखिरकार छिन लिया
अपना देश लूटेरो से
सौप दिया सत्ता
अपनो के हाथो में ………
अपनो ने क्या दिया विचार करे ………?
वही बांटो सत्ता पर कब्ज़ा ,बनाये रखो
जातिवाद -सामंतवाद -वंशवाद
भ्रष्ट्राचार का जहर
अपनी जहां वाले आज भी
ढ़ो रहे हर अभिशाप मगर ………
आहवाहन तुम्हारा लोकतंत्र के दीवानो
जागो उठ खड़े जाओ
असली आज़ादी की ज्योति जलाओ ………
अभिशापित शोषित आदमी के
हर मरते ख्वाब पा जाए जीवनदान
हे समता -सदभावना के सिपाहियों
आगे बढ़ो ,
वक्त तुम्हे कहेगा महान ………

 

 


डॉ नन्द लाल भारती

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ