Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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आज भी ...

 

आज भी ...
कल भी बेहाल था अपना गाँव

आज भी है

अपना गाँव सदियों पहले

तरक्की से बहुत दूर पड़ा था

अफ़सोस आज भी .............

कहने को आजादी है

पर ये कैसी आज़ादी है

बार -बार सवाल उठता है

जातिवाद ,भूमिहीनता ,गरीबी

अशिक्षा,बेरोजगारी ,पक्षपात ,

भ्रष्ट्राचार को लेकर

पर सब कुछ अनुत्तर आज भी ..........

भूमिहीन भय,भूख में जी रहे है

गाँव समाज की जमीन

पहुँच और दबंगों के कब्जे में है

आवंटन आज भी दूर है ...............

शोषित हक़ से वंचित है

हक़ की आवाज़ नहीं उठ रही है

बेहोशी की हालत में सब मस्त है

पग-पग पर मौजूद है
गम भुलाने का सामान

गांजा दारू की भरपूर है दुकान

पसरी है बेबसी अपने गाँव

आज भी .........................

मत पाकर मतवाले हुए लोग

बेसुध पद- दौलत के पहाड़ पर खड़े है

अपने गाँव के उपेक्षित लोग

हक़-श्रम की लूट,दीनता के दर्द में

तड़प रहे है आज भी ……

अपने गाँव-देश के शोषितों की

नसीब कैद है
धर्म और राजनीति के ठीहे पर
आज भी ............

जातिवाद ,भूमिहीनता,नशाखोरी
गरीबी और दहेज़ के बोझ से दबा

तरक्की से दूर अपना गाँव

कल भी बेहाल था

ताक रहा है राह

सामाजिक समानता की,
भूमिहीनता के अभिशाप से उबरने की

आर्थिक तरक्की की

आज़ाद देश में आज भी .......डॉ नन्द लाल भारती

 

 

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