अभिनन्दन
मैं भी चढ़ रहा हूं उम्र की सीढ़ियां
मुझे याद है ज़माने की तेवरियां
प्राइमरी पाठशाला जहां
मैंने ककहरा सीखा
लिखना -पढना सीखा
पढ़ाई का दौर, स्नातक तक चला
थम सा गया फिर
खनकते सिक्कों की जरुरतों ने
समय से पहले जिम्मेदार बना दिया
लम्बी बेरोजगारी के दंश ने
बहुत कुछ सीखा दिया
नौकरी मिली तकलीफों के बाद
फिर पढ़ाई आई याद
रात-दिन की मेहनत से
उच्च शिक्षा का ताज पा लिया
शिक्षा ने सृजन का पुरस्कार दिया
मुझे जीवन के किस्से याद है
कई बातें डंसती हैं आज भी
मैंने उन बातों पर हंसना शुरू कर दिया
उम्र की ढलानदार सीढ़ियों पर
चलना भी अब सीख गया हूं
क्योंकि अब साठ का हो गया हूं
मैंने जीवन के दौर में
उन्हें दूर जाते हुए,भूलते हुए भी देखा है
जिनके लिए त्याग दिया
खुद का सुख
उन्हें ही भूलाते हुए देखा है
क्या करें जनाब ?
अपनी ही आंखों को
अपने आंसू छिपाते हुए देखा है
यह नियति का खेल है जनाब
कोई छोड़ता है अनुपयोगी मानकर
कोई थामता है हाथ
अक्सर बीते हुए लम्हों में खो जाता हूं
अच्छे पलो का जश्न मनाता हूं
हाथों को लाठी की जरूरत तो है
मैं चाहता हूं आख़िरी दिन तक पुल रहूं
किसको पता जनाब
कब लाठी की जरूरत पड़ जाये
सध और तन कर चलने के लिए
सच है जनाब जीवन के उतार-चढाव में
लोग आते जाते हैं,
मतलब पूरा होते धकियाते निकल जाते हैं
चिन्ता न कीजिए जनाब
होगे जो अपने सच्चे
साथ निभायेंगे
पराई दुनिया है जनाब
जीवन के पड़ाव भी अलग अलग हैं
जीवन के हर पड़ाव का
जश्न मनाया कीजिए
नाचिये,गाइये,खुश हो जाइए
लिया नहीं है किसी से दिया है
क्या यह दिलेरी कम है
चाहे साठ के है या और......
जीवन भी एक मेला है जनाब
उठिये
उम्र के अगले पड़ाव का
खुद ही अभिनन्दन कीजिए।
नन्दलाल भारती
17/02/2023
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