अपनी जहां स्वर्ग की कोई बस्ती होती
गर अपनी जहां,
मुर्दाखोरो की हस्ती ना बनी होती।
आदमी को बदनसीब बनाने के लिए
मुर्दाखोर किस्म के लोग
अमानुषता जातिवाद-धर्मवाद जैसे
धारदार औंजारो का करते उपयोग ।
मुर्दाखोर आदमियत के दुश्मन
हर तरकीबे
अपनाते बदनसीब बनाने के लिए
हर हाल में स्वंय जीत पक्की लिए ।
अपनी जहां का
श्रमवीर-कर्मवीर बदनसीब ना होता
अपनी जहा में
गर भेदभाव का धारदार औंजार होता।
अपनी जहा की बदनसीबी का तंज
छुआछूत जातिवाद का सिसकता रंज ।
काश अपनी जहा के लोगो ने
बदनसीबी के कारणों को ,
नकार दिया होता
अरे अपनी जहा वालो ,
अपनी जहा की नसीब का
अभ्युदय युगो पहले हो गया होता ………
डॉ नन्द लाल भारती
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