नित छोटी होती अपनी जहां में
तथाकथित बड़े आदमी की ख्वाहिशें
होती जा रही है अन्तहीन
तथाकथित बड़ा आदमी चाहता है
लम्बरदारी कुबेर का खजाना
कंस की तरह हथियाना गद्दी
और शिकंजा कमजोर आदमी पर
जिससे लगी रहे कतारें
चैखट पर उसकी मधुशाला की तरह
आधुनिक युग का कमजोर
सूचनातन्त्र से परिपूर्ण
रग-रग पहचान चुका है
परजीवी तथाकथित बड़े लोगों के पास
कुछ नही है दमित कमजोर आदमी को
देने के लिये
तथाकथित बड़े लोगों के पास
कुछ है तो वह है
‘ाोषण की आधुनिक ही नही
रूढिवादी तकनीकी भी
और साथ ही छूछी दहाड़
भय आतंक और खौफ
पैदा करने की ताकत
ताकि बनी रहे उसकी सत्ता
नित बदलती अपनी जहां का
कमजोर भी लेने लगा है संज्ञान
रूतबे से उपजेे दर्द खौफ और
भय के खिलाफ तकि बची रहे
कमजोर आदमी की अस्मिता
डां नन्दलाल भारती
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY