Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

औरत कर्मयोगी

 
औरत कर्मयोगी

एक औरत थी कर्मयोगी
औरत होने का लाभ नहीं उठाया
संघर्ष किया,
संघर्ष का लोहा मनवा दिया
सड़ी-गली मानसिकता वालों के बीच 
कच्ची बस्ती में रहकर भी
शिक्षा को हथियार बनाया
और सफल भी हुई
तान दिया विहसता संसार
नहीं मानी हार
कर दिया  कुल का उद्धार
ना डरी ना थमी वो  कर्मयोगी
छोड़ी उसकी विरासत खड़ी है
उदास-उदास सिर झूकाये 
लगता है ईंट-पत्थरो के मकां से आंसू झर रहे हैं
कभी विहसता करते थे जो,
घर से बाहर तक पहुंच थी
बुरे दौर में मार लेती थी फेटा
पति है घर में, और बेटा
नहीं है वो मर्दानी
घर से दफ्तर का बोझ ढोती
गैरों के बुरे वक्त में सगी होती थी
नहीं है वो, जहां में
स्मृतियां बसी है पूरी स्ट्रीट में 
घरनी है घर परिवार को सुवासित करने वाली
मुश्किलों के छाती पर लकीर खींचने वाली
खुद सम्मान से आगे बढ़ती परिवार को बढ़ाती 
जीवन जीना कहां सबको आता है 
जीवन जीना भी है एक कला
स्मृतियों को नमन गोलोकवासी मैडम चन्द्रकला ।
नन्दलाल भारती
२६/१०/२०२३

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ