बड़े घाव है जिगर में ,छिपाने से नहीं छिपते ,
उतरते नहीं लब्ज जबान पर ,इशारे खुद कहते
कहने से भी क्या हुआ ,रह गए तरसते ,
अपनो ने ठगा ,रह गए हाथ मलते
तबाही कि फिक्र हमें भी ,हम भी है डरते ,
मतलब कि दुनिया ,दिन नहीं फिरते
अधिकार की दुहाई ,इंकलाब कहते है
पीए जहर बहुत ,अब ललकार हैं करते ...........
डॉ नन्द लाल भारती
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