अपनी जहां में नसीब क्या है
दैवीय चमत्कार में रंगा
एक आतंक
रूढ़िवादिता के यौवन में
मौंका,कर-श्रमफल ठगने का उपाय
बुध्दिहीन मानकर,कुबुध्दि का प्रदर्शन
नसीब तो कर्म-श्रम से सजती है ………
अपनी जहां में नसीब के रूप निराले
विषधर जैसे फुफकारते गोर-गोरे
पसीना बहाते आंसू से रोटी गीली करते
माथे पर चिंता के पहाड़ थामे
पेट पीठ से चिपकाए
लवाही जैसे सूखे काले काले ………
अपनी जहां में
कर्म-श्रमफल ठगा गया
हक़ पर डांका डाला गया
आदमी को अछूत तक बनाया गया
ठगी का इल्जाम
नसीब के माथे मढ़ा गया
नसीब का क्यों और कैसा दोष
दोषी तो वह नरपिशाच
जो जीते हुए को सर्वहारा बना दिया
नसीब को बदनसीब बना दिया
काश बदनसीबों को
समानता का मौंका मिल गया होता
उजड़ी नसीब का सूर्योदय हो गया होता
अरे अपनी जहां वालो
आज का बदनसीब कल का महान है
वही इस जहां कि पहचान है...................
डॉ नन्द लाल भारती
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