बंटवारा
डेढ बीघा भर जमीन के मालिक खूबचरन, कभी शहर की ओर रुख नहीं किये। अपने खेत की तरफ इशारा कर कहते थे,ये धरती ही मेरा जीवन है,ओढना-बिछौना है। इसी माटी में पैदा हुआ हूं और एक दिन इसी में मिट जाऊंगा। वैसे तो खूबचरन दो भाई थे, बड़े भाई शुभचरन,बतचरन के जन्म के साल भर बाद ही स्वर्ग सिधार गए थे और कुछ माह बाद उनकी पत्नी भी । बतचरन का पालन पोषण, ब्याह शादी खूबचरन और उनकी पत्नी देवाती ने अपने छ: बच्चों के साथ बड़ी ईमानदारी से बिना किसी भेदभाव के किया था।
बतचरन युवा होते ही प्रदेश चला गया। शहर में नौकरी धंधा कर दौलत जोड़ता रहा,चार छः महीने में अपने काका खूबचरन को पत्र लिखता। पत्र में अक्सर अपनी मुश्किलों का जिक्र करता जबकि वास्तव में वह होता नहीं था। कुछ साल के बाद वह पत्नी सहित गांव आया और बंटवारे की ज़िद पर अड़ी गया, पंचायत भी बुला लिया। पंचों के सामने खूबचरन ने घर-खेत खलिहान, बर्तन भांड़े और अनाज सब जो कुछ था घर में था। आधा-आधा बंट गया । पंच ही नहीं गांव के लोग भी खूबचरन की खूब प्रशंसा कर रहे थे। इसी बीच बतचरन खड़ा हुआ और बोला काका और कुछ तो नहीं बचा है।
बेटवा भले गरीब हूं पर बेइमान नहीं, मेरी निगाह में अब कुछ नहीं बचा है। जाओ पूरा घर खुला है तहकीकात कर लो, तुम्हारी सन्तुष्टि मेरे भाई के आत्मा की शान्ति होगी।
बतचरन व्यंग्य भरी निगाह से देखा और बोला ठीक है काका देख लेता हूं।वह घर के कोने कोने की तलाशी लिया । किसी कोने में एक प्याज मिल गई, बतचरन प्याज पंचायत के सामने रखते हुए बोला काका यह क्या है ? खुद की जेब से चाकू निकाला,प्याज के दो फांक कर दिया और बोला काका ले लो अपना हिस्सा।
बतचरन की बात सुनते ही खूबचरन की आंख से आंसू टपक पड़े वह बोला बेटा तुम रख लो हम नमक से काम चला लेंगे। खूबचरन दुनिया में तो नहीं रहा पर डेढ़ टांग का बतचरन अपनी पागल पत्नी चार विक्षिप्त बच्चों के साथ खूबचरन की आंखों से टपके आंसू का बोझ ढो रहा है, गांव के लोग कहते हैं हाय रे बतचरन ये कैसा बंटवारा कर लिया तुमने ?
नन्दलाल भारती
28/02/2023
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