बंगलौर -मैसूर यात्रा वृत्तांत
इंदौर से हमारी इंडिगो फ्लाइट प्रातः पांच बजे की थी । मेरे साथ चित्रकार बेटी शशि भारती और नितिन तामरा जो उम्र में तो सिर्फ पांच साल की है परन्तु बुध्दि, विवेक और समझदारी की दृष्टि से तो बड़ी है। मेरे साथ यात्रा कर वह बहुत उत्सुक थी। हमारी फ्लाइट बंगलौर एअरपोर्ट पर लगभग साढ़े सात बजे लैण्ड कर गयी थी। बंगलौर का एअरपोर्ट का सौन्दर्य तो नयनाभिराम है। इंदौर से बंगलौर की फ्लाइंग टाइम एक घंटा पैंतीस मिनट की थी । पूरी यात्रा के दौरान सिन्डरोला यानि मेरी नातिन की पलक नहीं झपकी। मुझे अपने साथ इस हवाई यात्रा में पाकर बहुत खुश थी। उसकी संवाद अदायगी और हाजिर जवाबी के क्या कहने।साउथ इंडियन खानों की तामरा को अच्छी जानकारी है। तरह-तरह के साउथ इंडियन व्यंजन बनाकर खिलाने को कहती। मेरी बेटी बंगलौर में रहती है। बेटी शशि भारती और दमाद सुरेश पुष्पगाथन दोनों पेशे से चित्रकार हैं और बंगलौर में रहते हैं। दमादजी हमें लेने आए थे। तामरा ने अपने डैडी से मेरा कुछ इस अंदाज में करवायी।
तामरा बोली डैडी यू क्नो ही इज मैं ग्रैण्ड फादर ?
येस तामरा आई क्नो सुरेश ने कहा।
दोनों बाप-बेटी का पूरे रास्ते भर इंग्लिश में संवाद जारी था। तामरा का मुख्य टापिक मैं उसकी नानी और रंजन मामा यानि मेरा छोटा बेटा आजाद था। इंदौर में दीवाली कैसे मनायी, क्या खायी, इंदौर में क्या देखा, खासकर छप्पन दुकान का जिक्र करती रही। तामरा की बातचीत में पता ही नहीं चला, बंगलौर एअरपोर्ट से पाम नेचुरल एवन्यू, हरमावू-आगरा रोड, कल्याणनगर की दो घण्टे की यात्रा कब खत्म हो गई ।
अपने साथ मेरी यात्रा से तामरा अत्यधिक उत्सुक थी वह घर पहुंचते ही खेल खिलौने वाला कीचन तैयार कर, मेरे लिए इडली सांभर और चाय बनाने में जुट गई। मुझे नाश्ता और चाय देकर यात्रा से थकी माली तामरा सो गयी। हम लोग नहाने धोने में जुट गए।
मंगलवार दिनांक २२/११/२३ को भोर में ढाई बजे हमारी यात्रा शुरू हुई थी और सुबह साढ़े नौ बजे बेटी के घर बंगलौर पहुंच गये थे। बंगलौर को अब बंगलुरु कहा जाता है। बंगलुरु का पुराना नाम बंगलौर, बंगलौर और बैंगलोर है। बंगलुरु कर्नाटक राज्य की राजधानी है। बंगलुरु भारत का तीसरा सबसे बड़ा नगर है और पांचवां सबसे बड़ा महानगरीय क्षेत्र है । बंगलौर की जनसंख्या लगभग ८५ लाख होगी और महानगरीय क्षेत्र की जनसंख्या ९० लाख के आसपास होगी। बंगलौर डक्कन पठार पर ९०० मीटर की ऊंचाई पर स्थित है।यह शहर अपने सुहाने मौसम के लिए देश -दुनिया में जाना जाता है। बंगलौर भी पर्यावरण प्रदूषण से अछूता नहीं रहा। यहां बरसात कभी भी हो जाती है। बंगलौर को भारत की सिलिकॉन वैली और भारत की आई टी राजधानी भी कहा जाता है।
मंगलवार को देर हो जाने की वजह से स्कूल नहीं जा सकी। बुधवार को हंसी खुशी मुझे अपने साथ स्कूल जाने के लिए मेरा हाथ पकड़े लिफ्ट की ओर दौड़ पड़ी। मेरे साथ बड़ी उत्सुकता के साथ एक्टिवा से स्कूल गयी । हर दादा -दादी, नाना-नानी को अपने नाती-पोते को स्कूल छोड़ने की ख्वाहिश होती है, मेरी भी थी जो पूरी हो गई। बुधवार का दिन आनन्द पूर्वक बीत गया। रात में रायल पाम रेसीडेंसी की छत से आईटी हब बंगलौर को निहार -निहार कर अद्भुत आनन्द हुआ। रात में रायल पाम रेसीडेंसी की एकदम उपरी छतर से आईटी इमारतें देखकर लग रहा था जैसे धरती पर चांद उतर आया हो।
वृहस्पतिवार को होकर उठा तो हिन्दी परिवार के सचिव श्री एस मोहन्ती जी के सौजन्य से हिन्दी परिवार, इंदौर के ह्वाट्सएप ग्रुप पर मेरे नई दुनिया, इंदौर दिनांक २३/११/२०२३ में प्रकाशित साक्षात्कार सुर्खियों में था।यह साक्षात्कार नई दुनिया के पत्रकार श्री हर्षल राठौड़ जी ने २२/११/२०२३ को सायं काल में दूरभाष पर लिया था। वहीं साक्षात्कार २३/११/२०२३ को प्रकाशित हुआ था जो दूरसंचार के युग में दूरसंचार के गढ़ बंगलौर में सोशल मीडिया पर मुझे पढ़ने को मिल गया था। सुबह हम लोग यानि बेटी, दमादजी और मैं, नाश्ते में लोकल फूड का लुत्फ लिया।शाम को हरमावू लेक घुमने गये। सचमुच बहुत सुंदर प्राकृतिक नजारा था, चारों तरफ हरियाली पेड़ पौधे,फूल पौधे की क्यारियां, बहुत सुंदर लेक का नजारा था। यह लेख चर्तुभुजाकार है, लगभग तीन किलोमीटर के आसपास के घेरे में यह लेक है। इस लेक बहुत सारे सारे पानी में रहने वाले सांप और मछलियां है। यह देखकर बड़ा दुःख हुआ,लेक में नाले का पानी भर रहा है।नाले के पानी की वजह से लेकर का पानी काला और बहुत बदबूदार हो रहा है और मछलियां मर रही है। प्रशासन को इस ओर तुरंत ध्यान देने की जरूरत है वरना वह दिन दूर नही जब हरमाव लेक अपना अस्तित्व खो देगी।हरमाव लेक के मुख्य द्वार के सामने डॉ अम्बेडकर अम्बेडकर की मूर्ति तैयार खड़ी है पर देखकर लगता है, मूर्ति को लोकार्पण का इंतजार है।
पच्चीस नवम्बर को विधानसभा जिसकी डिजाइन सर श्री एम. विश्वसरैया द्वारा की गई है,को देखते हुए
वेंकट अप्पा आर्ट गैलेरी एण्ड म्यूजियम में आर्ट प्रदर्शनी देखा। एम जी रोड होते हुए मनोरमा (ईयर बुक) निवास के सामने से होते हुए विट्ठल माल्या रोड (विजय माल्या के पिताजी के नाम पर रोड) पहुंचे विट्ठल माल्या रोड बहुत व्यस्त रोड है, खैर बंगलौर में ट्रैफिक समस्या है। मुझे लगता है ट्रैफिक और कचरा दोनो बंगलौर के लिए बहुत बड़ी समस्या है। विट्ठल माल्या रोड बंगलौर का प्रसिद्ध इलाका है, सम्भवत: व्यापार का केन्द्र भी है । यह बंगलौर का ह्रदय स्थल है । यहां पर विदेश की अनुभूति होती है। विट्ठल माल्या रोड की अद्भुत छटा को निहारते हुए फिर एमके एफ म्यूजियम ऑफ आर्ट में लगी आर्ट प्रदर्शनी को देखकर,गैलरी टाइम एण्ड स्पेस में लगी आर्ट प्रदर्शनी को देखकर हम लोग यूबी सीटी माल पहुंचे यहां भी सबसे पहले यूबी आर्ट गैलरी में आर्ट प्रदर्शनी का अवलोकन कर यूबी टावर देखा। यह यूबी माल और यूबी टावर विट्ठल माल्या की विरासत है। यूबी माल बहुत बड़ा शापिंग सेन्टर है। पच्चीस नवम्बर को यूबी माल में लाइव आई पी एल शो चल रहा था, जिसका पास सिर्फ आनलाईन पंजीयन पर मिल रहा था और इस लाइव शो में सिर्फ पास धारियों को प्रवेश की इजाजत थी। बंगलौर सचमुच सम्पन्न और भव्य शहर और आईटी का केन्द्र है।आज वैश्विक दौर में ज्यादातर आईटी के भावी इंजीनियरों के सपना बंगलौर से होकर आगे बढ़ता है। इस शहर में साहित्यकारों/पत्रकारों के लिए कोशी ऐसा केन्द्र उपलब्ध हैं, जो शहर के रचनाकार और पत्रकारों का अड्डा है। शहर के मध्य में हलसूर लेक है जो काफी लेक है। कन्टीरिवा स्टेडियम और कब्बन पार्क भी देखने लायक है।
छब्बीस नवम्बर को एच ए एल म्यूजियम देखकर अपनी भी छाती छप्पन इंच को हो गई। म्यूजियम का अवलोकन मैंने बेटा अनुराग भारती, आईटी इंजीनियर और चार साल के पौत्र देवव्रत के साथ किया। म्यूजियम देखकर हर भारतीय गर्व करेगा। यहां जेट और फाइटर विमान प्रदर्शित हैं।गर्व की बात है कि ये जेट और फाइटर हिन्दुस्तान एरोनॉटिकल लिमिटेड द्वारा बनाए गए हैं, जिसमें मारुत (एच एफ-२४) ट्रेनर,मिग-२२ फाइटर ट्रेनर, हिन्दुस्तान जेट -३६(आईजेटी) लाइट कोम्बेट एअर क्राफ्ट, अजीत,कनबेर्रा, एडवांस लाइट हेलीकाप्टर धुर्व, सी किंग एमके -४२.एच पी टी -३२, मिग- २१ एम फाइटर एअरक्राफ्ट, डोव (डेवन) हंसा, हिन्दुस्तान ट्रेनर(एचटी-२) किरन,पुष्पक, बसंत, इसके अतिरिक्त एअर क्राफ्ट एण्ड इंजन -इनडूर डिस्प्ले भी देखा ।इस म्यूजियम मेडिसिनल पौधे भी लगे हुए हैं। देश की रक्षा एवं सुरक्षा की दृष्टि से हिन्दुस्तान एरोनॉटिकल लिमिटेड बहुत महत्वपूर्ण है। मुझे पूरा यकीन है कि इस हिन्दुस्तान एरोनॉटिकल म्यूजियम को देखकर हर भारतीय को सकून और गर्व की अनुभूति होगी।
सत्ताईस को कोनेना अग्रहरा से प्राणी जो पेट एनिमल सेंचुरी है। इस सेंचुरी की विशेषता यह है कि पशु पक्षियों को छू और सहला सकते हैं, इन्हें घास और दाना भी अपने हाथ से खिला सकते हैं।
यहां के सभी पशु-पक्षी रेस्क्यू किये गये हैं।प्राणी शहर से दूर है पहाड़ियों के बीच हरे-भरे जंगलों के बीच सोमन्ना गांव में स्थित है। इस सेंचुरी में दुर्लभ प्रजाति की मछलियां, विभिन्न और दुर्लभ प्रजाति के चूहे, खरगोश, दुर्लभ प्रजाति के कछुये, घोड़े,पौनी,गदहे,खच्चर, आस्ट्रेलियन और अफ्रीकन शुतुरमुर्ग, दुर्लभ प्रजाति की बत्तखे, अफ्रीकन बकरियां, भेड़े और भी बहुत कुछ। खास बात ये थी कि इन पशु-पक्षियों को छू और सहलाया जा सकता है। ये पशु-पक्षी कुछ ही सेकंड में परिचित हो जाते हैं।इस सेंचुरी का आकर्षण है पक्षियों वाला सेक्शन जिसमें दुर्लभ प्रजाति के तोते और उन्हीं से मिलती
कई तरह की रंग-बिरंगी पक्षियां हैं। इस सेक्शन की खास बात यह है कि ये पक्षियां कुछ ही देर में परिचित हो जाती हैं,इस पंक्षियो के सेक्शन में बैठने की ब्यवस्था है, बैठते ही ये पंक्षियो उपर बैठने लगती हैं,हाथ फैलाते ही पक्षियों का झुंड हथेलियों पर बैठ जाता है। प्राणी के वलेन्टियर हथेलियों पर धान के दाने रखते हैं, पंक्षियां हथेली पर बेफिक्री से बैठकर मजे से खाते हैं। पंक्षियो के बीच अद्भुत आनंद और आत्मीय सी मिलता है। देवव्रत पंक्षियो के बहुत खुश कुछ ही मिनट में बोलता दादा गोदी में ले लो।कुछ देर के बाद अनुराग से कहता पापा गोदी ले लो। सालों बाद बेटा और पौत्र के साथ हमारी यात्रा यादगार बन गई,जो हमेशा याद रहेगी।
अट्ठाईस नवंबर को बंगलौर मेट्रो से अम्बेडकर मेट्रो स्टेशन उतर कर कर्नाटका विधान सभा पहुंचे। वैसे नया विधानसभा बना हुआ है पर पुराना विधानसभा ज्यादा सुंदर है। विधानसभा के ठीक सामने डॉ अम्बेडकर की मूर्ति बनी हुई है। विधानसभा के सामने रोड के दूसरी तरफ कर्नाटक हाईकोर्ट स्थित है। विधानसभा सभा देखने के बाद हम लोग मेट्रो से कब्बन पार्क की ओर चल पड़े। कब्बन पार्क बहुत बड़ा पार्क है। इस पार्क में विशालकाय वृक्ष है। कब्बन पार्क को लंग्स आफ बंगलौर भी कहते हैं। कब्बन पार्क और संग्रहालय बंगलौर शहर के बीच में बना हुआ बहुत ही मनमोहक एवं मनोरम स्थल है। कब्बन पार्क का निर्माण १८६४ में हुआ था। इस पार्क का नाम पूर्व मुख्य आयुक्त मार्क के नाम पर रखा गया है।इस पार्क में बना संग्रहालय देखने योग्य है। बताते हैं कि यहां होयसला शिल्पकला, मोहनजोदड़ो से प्राप्त प्राचीन तीरों,सिक्कों और मिट्टी के पात्रों भी संग्रहित हैं। कब्बन पार्क तीन सौ एकड़ में फैला है। यहां विशालकाय बरक्स हैं जो पार्क को अद्भुत बनाते हैं। कब्बन पार्क भरे पेड़ों का एक दर्शनीय स्थल भी कहा जा सकता है।इस पार्क में पुस्तकालय और चिल्ड्रेन पार्क भी है। यह पार्क लेखकों, कलाकारों, चित्रकारों, वानिकी शोधार्थियों के लिए किसी जन्नत से कम नहीं हैं।
उन्नतीस नवंबर को शाम को कुछ माल घूमें और रात्रि का उत्तर भारतीय भोजन कर बेटी के घर वापस आ गए। रात्रि विश्राम कर हम लोग तीस नवम्बर को सुबह बंगलौर से मैसूर की यात्रा पर निकल पड़े। मैसूर यात्रा के दौरान हमने बंगलौर सीटी के के.आर.मार्कैट जो सब्जी और फूलों का बहुत बड़ा मार्केट है। फ्लावर्स मार्केट बहुत प्रसिद्ध है, यहां दूर दूर से फोटो ग्राफर्स फोटो लेने आते हैं।यह फ्लावर मार्केट बहुत मंजिला है, यहां दुनिया भर के फूल देखें जा सकते हैं। के.आर.मार्केट होते हुए हम लोग पी.ई.एस.यूनिवर्सीटी(पीपुल्स इजुकेशन सोसायटी) पहुंचे वहां हम डॉ सुनीता वी और श्री साकेत शर्मा से मिले। डॉ सुनीता वी, इंग्लिश लिटरेचर के साथ साइक्लोजी और मैनेजमेंट पढ़ाती है। श्री साकेत शर्मा,ला के प्रोफेसर हैं,वे जुडिसियरी विशेषज्ञ हैं,वे मूलतः पटना के रहने वाले हैं।पी ई एस यूनिवर्सिटी बहुत बड़ी और ख्यातिनाम हैं।यह यूनिवर्सिटी इंजीनियरिंग के प्रसिद्ध हैं।इस यूनिवर्सिटी में ला,सोसोलोजी, प्रबंधन एवं अन्य विषय पढ़ाए जाते हैं, यहां देश भर से छात्र उच्च शिक्षा के लिए आते हैं, सुविधाओं की दृष्टि से भी यह यूनिवर्सिटी अव्वल दर्जे की लगती है। पीईएस यूनिवर्सिटी से हमारी मैसूर की यात्रा शुरू हो गई।यह यात्रा बहुत सुखद थी, बंगलौर मैसूर हाईवे के दोनों तरफ हरे भरे जंगल, बड़े-बड़े नारियल, गन्ना और धान के खेत देखकर मन प्रफुल्लित हो रहा था। वैसे तो शुरुआत से यात्रा सुखद थी परन्तु शोले फ़िल्म का रामगढ़ (जिसका मूल नाम रामनगरा है) ने यात्रा को रोमांचकारी बना दिया। आज भी रामगढ़ संरक्षित है। पहाड़ पर स्थित मंदिर दूर से दिखाई देता है।
मैसूर पहुंच कर हमने कारंजी लेक नेचर पार्क देखा। कारंजी लेक बहुत बड़ी झील है जिसके चारों तरफ सघन हरा भरा जंगल है। यह एक बर्ड सेंचुरी हैं, यहां विभिन्न प्रकार के पक्षी पाये जाते हैं। इस नेचर पार्क में औषधीय पौधे भी उपलब्ध हैं। कारंजी लेक नेचर पार्क के सामने ही चामुंडा पहाड़ी, यही सदगुरु को ज्ञान प्राप्त हुआ था । यही चामुंडा मंदिर है। बंगलौर से मैसूर की दूरी दो सौ किलोमीटर है,जो कार से दो घण्टे में तय की जा सकती है।मैसूर से केआर एस(कृष्ण राज सागर डैम)जिसे कावेरी डैम के नाम से भी जाना जाता है,जो मैसूर से लगभग पचास किलोमीटर दूर र उत्तर -पश्चिम स्थिति दर्शनीय मानवकृत स्थल है। इस बांध का निर्माण १९३२ में किया गया था। इस डैम को के.आर.एस.डैम के नाम से भी जाना जाता है। इस डैम से निकाली गई नहरों से लगभग ९२००० एकड़ भूमि की सिंचाई की जाती है। इस बांध का निर्माण कावेरी नदी पर किया गया है। कृष्णराज सागर डैम भारत की आजादी से पहले की सिविल इंजीनियरिंग की बेजोड़ मिसाल है।बांध की ऊंचाई लगभग १३० फुट है।बांध के उत्तरी कोने पर संगीतमय फव्वारे बने हुए हैं। बांध के नीचे वृन्दावन गार्डन बना हुआ है। इस बांध का नक्शा विश्व विख्यात अभियंता श्री एम.विश्वश्वरैया बनाया था। कृष्ण राज सागर बांध का निर्माण कृष्णराज वुडेयार चतुर्थ के शासन काल में हुआ था। बांध के नीचे एक तालाब है जिसे नाव द्वारा बांध के उत्तरी किनारे और दक्षिणी किनारे के बीच की दूरी तय की जा सकती है। नाव का एक तरफ का किराया चालीस रुपए लगते हैं, दोनों तरफ का किराया अस्सी रुपए लगते हैं। नाव अथवा तालाब में बनी सड़क से पैदल फाउण्टेन तक पहुंचा जा सकता है।
के.आर.एस.मे हेमावती और लक्ष्मणतीर्था नदियां मिलती है। इस पर जल विद्युत का उत्पादन होता है। इसी के.आर.एस.बांध के पानी से बंगलौर की प्यास बुझती है । बांध से लगा हुआ वृन्दावन नामक गार्डन बना हुआ है,जो पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र है। बांध पर उत्तर की ओर कावेरी की मूर्ति बनी हुई है। इसके सामने गार्डन के उत्तरी सिरे पर राजा कृष्णराज की मूर्ति है। गार्डन के किनारे कई छतरियां बनी हुई है।
जिस स्थान पर कावेरी नदी जलाशय में प्रवेश करती है वहीं पर पास में कृष्णराज नगर नामक कस्बा है जो मिट्टी के कलात्मक सुंदर बर्तनों के गृह उद्योग के प्रसिद्ध है।
कावेरी डैम हम लोग पांच बजे पहुंच गये थे। बहुत विशाल डैम और बहुत ऊंचा है। डैम की तलहटी में बहुत विशाल पार्क बना हुआ है, झरने बने हुए हैं, हरियाली और फूल पौधों का क्या कहने ? अति सुन्दर दृश्य। शाम को फाउण्टेन शो(जल तरंगीय नृत्य) मन लुभावन दृश्य उत्पन्न करता है। फाउण्टेन के एक शो में कम से कम आठ से दस हजार लोग होते है।पहला शो सायं छह: बजकर पचास मिनट पर शुरू होता है। हम लोग इसी शो में थे। बहुत बेहतरीन शो था परन्तु हुड़दंग बाज लोग असली आनंद की अनुभूति में खलल डाल दिये थे,शायद हर शो में ऐसा ही होता है, कन्नड़ और मलयालम भाषी लोग अव्यवस्था पैदा कर देते हैं। फाउण्टेन के दो तरफ स्टेडियम जैसी बैठने की ब्यवस्था है और काफी खुला मैदान है पर वहां न पुलिस ने सुरक्षाकर्मी नजर आते। सुरक्षा कर्मियों के सहयोग से व्यवस्था को बेहतर बनाया जा सकता है। वृन्दावन गार्डन स्थानीय पर्यटन स्थल नहीं है यह एक राष्ट्रीय पर्यटन स्थल और धरोहर भी है।
यहां एक बड़ा होटल भी है, जिसमें अग्रिम बुकिंग कर रुककर कर रात्रि के अद्भुत नजारा को देखा जा सकता है। रात में मंसूरी जैसा दृश्य जमीन पर उत्पन्न हो जाता है। हम लोग फाउण्टेन शो देखकर डैम से मैसूर के वंटी कपल (जय लक्ष्मी पुरम)में रात के होटल विश्राम कर सुबह यानि एक दिसंबर मवाली टिफिन रूम्स (MTR)में सुबह का नाश्ता करने के बाद मैसूर पैलेस की यात्रा पर निकल पड़े जो वंटी कपल से पच्चीस किलोमीटर दूरी पर स्थित है।मैसूर पैलेस की अद्भुत इंजीनियरिंग निर्माण कला है। मैसूर पैलेस का निर्माण १४वीं सदी में वाडयार राजाओं ने करवाया था। मैसूर पैलेस की डिजाइन ब्रिटिश वास्तुकार हेनरी इरविन ने बनाया था। मैसूर पैलेस वाडियार महाराजाओं का निवास स्थान हुआ करता था। मैसूर पैलेस द्रविड़, पूर्वी और रोमन कला का अद्भुत संगम है। सलेटी पत्थरों से बना यह महल गुलाबी रंग के पत्थरों के गुंबदों से सजा है। महाराजा पैलेस, राजमहल मैसूर के कृष्णराज वाडियार चतुर्थ का है।यह पैलेस बाद में बनवाया गया था इससे पहले का राजमहल चन्दन की लकड़ियों से बना था। एक दुर्घटना में राजमहल का बहुत नुकशान हुआ। इसके बाद दूसरा राजमहल बनवाया गया और पुराने महल को बाद में मरम्मत करवाया गया जहां अब संग्रहालय है। दूसरा महल पहले से ज्यादा बड़ा और सुन्दर है।मैसूरु शब्द का शाब्दिक अर्थ गढ़ होता है। पुराने किले के अन्दर पहला महल १४वीं शताब्दी में बनवाया गया था जिसमें कई बार आग लग गई और इसका पुनर्निर्माण भी किया गया। पुराना महल लकड़ी का बना हुआ था जिससे आसानी से आग पकड़ लेती थी । वर्तमान महल ईंट,पत्थर और लकड़ियों से बना हुआ है। वर्तमान संरचना का निर्णय १८९७ और १९१२ के बीच में किया गया था, वर्तमान संरचना को नये किले के नाम से जाना जाता है।१६१२ ई० में ओड़िया नामक राजा ने मैसूर राज्य की स्थापना की थी। इस मैसूर राज्य में आगे चलकर दो प्रमुख राजा हुए-हैदर अली और टीपू। टीपू सुल्तान समता एवं समाजवादी राजा थे, टीपू सुल्तान ने ही शूद्र महिलाओं को स्तन ढकने का अधिकार कर दिया था जबकि इसके पूर्व शूद्र वर्ण की महिलाओं को कमर से ऊपर कपड़े पहनने के अधिकार से वंचित रखा था। इस अमानवीय प्रथा को टीपू सुल्तान ने बंद करवाया,इस वज़ह से टीपू सुल्तान को मानवता का ध्वजा वाहक कहा जाता है। टीपू सुल्तान और हैदर अली दक्षिण भारत के शासक थे जिन्हें अंग्रेजो को पराजित करने में सफल रहे।
प्रागैतिहासिक काल में मैसूर में महिशासुर का साम्राज्य था।मैसूर पैलेस, ताजमहल के बाद भारत में सबसे प्रसिद्ध पर्यटक आकर्षणों में से एक है। मैसूर पैलेस को देखने प्रति वर्ष छ: मिलियन से अधिक पर्यटक आते हैं। एक सौ रुपए प्रति व्यक्ति मैसूर पैलेस का वर्तमान में टिकट है। मैसूर से बंगलौर हम लोगों हाईवे से लगे गांव औल धान के खेतों, नारियल और गन्ने के खेतों का भ्रमण किया। सीटी आफ ट्वाज चनपटना के निर्मित खिलौने की हाईवे के किनारे सजी दुकानें और धान,गन्ने और नारियल से लहलहाते हुए खेत देखकर हम सीधे बंगलौर को निकल पड़े।बंगलौर सीटी के स्वामी विवेकानंद अध्ययन वन होते हुए हम चित्रकला परिषद (आर्ट कालेज) लगी प्रदर्शनी देखा। चित्रकला परिषद ने लगी थी साक मार्केट (आर्ट एण्ड क्राफ्ट एक्जिविजन) देखने के बाद हम बेटी शशि भारती,दमाद सुरेश पुष्पगाथन और नातिन तामरा के साथ बेटी के घर वापस आ गया और हमारी बंगलौर -मैसूर यात्रा का यादगार समापन हो गया।
मैं बंगलौर की यात्रा तो पहले भी कर चुका था परन्तु इस बार की यात्रा काफी सुखद रही इस यात्रा को तामरा और देवव्रत ने अधिक मनोहारी और सुखद बना दिया। बंगलौर क्रिश्चियन प्रभावित शहर बनता जा रहा है। यहां मलयालम और कन्नड़ का बोलबाला है। यहां साऊथ इंडियन को हर क्षेत्र में प्राथमिकता मिलती है।यहां नार्थ इंडिया के लोगों की जनसंख्या कम तो नहीं पर जातिवाद और क्षेत्रवाद में बंटे हुए हैं उनकी एकजुटता नहीं दिखाई देती जरूरत है संकीर्ण मानसिकता से ऊपर उठकर देश के विकास में भागीदारी निभाने की। बंगलौर में मिश्रित आबादी तो है। मंदिर,मस्जिद, गुरूद्वारे और मठ भी है। प्रसिद्ध मंदिर तो है ही यहां के मंदिरों की निर्माण शैली कलात्मक आकर्षक होती है। नामद्रोलिंग मानेस्टरी, बयलाकुप्पी, कुर्ग(बंगलौर) से दूर है परन्तु प्रसिद्ध है, जहां दूर -दूर दर्शनार्थी आते हैं। बंगलौर एवं दक्षिण भारत के हिन्दू मंदिरों की निर्माण कला उत्तर भारत से बिल्कुल भिन्न होती है, मन्दिरों की दीवार से लेकर शिवालो तक कलात्मक मूर्तियां बनी होती है जो दर्शनार्थियों को आकर्षित करती है। मेरी यह बंगलौर यात्रा काफी खास रही बेटी -बेटा और उनके परिवार के साथ बंगलौर दर्शन यादगार बन गया। बंगलौर से मैं ५ दिसंबर २०२३ को मैं इंडिगो उड़ान संख्या 6E6743 से बंगलौर और मैसूर की यादों के साथ इंदौर वापस आ गया।
दिनांक ०६/१२/२०२३
नन्दलाल भारती
कवि,लेखक एवं उपन्यासकार
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