भगवान
आज फिर धार्मिक परंपराओं के निर्वहन में कई लोग जान से हाथ धो बैठे धीरेन बाबू।
अखबार में पढ़ा पलकें गीली हो गई। क्या कहें,लोग कब समझेंगे? कहते हैं ना गोद में छोरा नगर में ढिंढोरा।
क्या मतलब हुआ वीरेन बाबू?
सीधा सा मतलब है,घर में बुजुर्गो को समय पर दवाई,और दाना-पानी नहीं मिल रहा।पोता-पोती को बुजुर्गो से दूर किया जा रहा है। कुछ बहूयें सास-ससुर को कबाड़ का सामान समझ रही हैं।कुछ पत्नियां पतियों को प्रताड़ित कर रही है,सास को डायन साबित करने में लगी है तो बताओ धीरेन बाबू भगवान कैसे खुश होगा?
हां समझ में बात आ गई। जब दृश्य भगवान आंसू बहा रहा है तो अदृश्य भगवान कैसे खुश होगा सिर्फ परम्परा भर निभाने से नहीं वीरेन बाबू बोले।
परम्पराओं को बदलने का वक्त आ गया है। कर्मकांड वाली मानसिकता को वास्तविक परम्परा में बदलने की जरूरत है। परम्पराओं का अंधभक्त नहीं बनना है , परम्पराओं को बदल होगा धीरेन बाबू बोले।
कैसे वीरेन बाबू पूछे ?
तीज -त्योहार, के दिन घर के बुजुर्गो का सम्मान करो, उनकी पसंद का खाना बनाओ और उत्सव मनाओ,देखो भगवान खुश होते हैं कि नहीं।दान ही करना है तो जरूरतमंद को करो,अनाथ आश्रम,वृध्दाश्रम करो। वीरेन बाबू माता -पिता की सेवा ही भगवान की पूजा है पर भ्रमित लोग कहां मानते हैं ?
सच धीरेन बाबू माता -पिता धरती के भगवान है,लोग हैं कि इधर-उधर भटक रहे हैं वीरेन बाबू बोले।
नन्दलाल भारती
01/04/2023
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