Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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चूड़ियों का बोझ

 
चूड़ियों का बोझ l
हेलो पापा.... पापा क्या हुआ? फोन उठाने में इतनी देर क्यों?
बेटा कुछ नहीं है l सब ठीक हूँ l मैं ठीक हूँ तुम कैसी हो? नन्ही परी कैसी है?
पापा  आपकी जबान जैसे लड़खड़ा रही है। कोई बात तो छिपा रहे हो ?  
बेटी  सिर में दर्द है l तू चिंता ना कर  और कोई बात नहीं।
बीपी नार्मल है ना पापा?
कम्बख्त पर कैसा भरोसा? उपर नीचे तो होती रहती है l
दवाई समय से खाया की नहीं lकिसी की बात को दिल से मत लगाया करो पापा l बीपी क्यों बढ़ रही है l कोई बात तो छिपा रहो बताओ ना पापा l
बेटी तुम्हारी धार्मिक अंधभक्त माँ ने मुझे  चूड़ियाँ भेंट कर दी है। सोचो बीपी स्थिर रहने देगी क्या ?
ऐसी क्या बात हो गई?
 मुझे उस धर्म की राह नहीं जाना, जहां आदमी को अछूत समझा जाता है पर तुम्हारी मां को यही पसंद है।  छोटी-छोटी बातों को खुद से धर्म से जोड़कर 
बात को बतंग बतंगण बना देती है,अब तो कहती  है, तुम  चूड़ियाँ पहन लो घर के बाहर का काम मैं कर लूंगी  l मैंने हर खुशी दिया, मेरे साथ ऐसा दुर्व्यवहार ?  चूड़ियां भेंट कर रही है।
 उम्र के अंधेरे मोड़ पर   चूड़ियों का भारी भरकम बोझ कैसे ढो पाऊंगा? बेटा फोन रखो दवाई का टाईम हो गया है l
घर परिवार के लिए सब कुछ तो कर दिये हो। कोई कमी तो नहीं है। हेलो पापा सुन तो रहे हो ना....। फोन तो पहले ही डिस्कनेक्ट  हो चुका था l 
नन्दलाल भारती 
11/02/202

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