दहेज दानव
बेटी का जन्म पिता के लिए उत्सव होता है
पिता के लिए बेटी और बेटे में कोई
अन्तर नहीं होता है
ये बगिया के फूल,
परिवार की रौनक होते हैं
ये सच्चाई डंसने लगती है,
ज्यों -ज्यों बेटी बढ़ने लगती है
एक दिन पिता पर पहाड़ गिर जाता है
पिता जब बेटी के ब्याह के लिए,
दमाद की तलाश में निकलता है
बेटी के बाप को ज्ञात होता है,
दहेज लेना पाप है कि अवधारणा
बदलते युग में पुण्य में बदल चुकी है
दूल्हों की बाजार सज रही है,
ब्याह अब पाणिग्रही संस्कार नहीं रहे
व्यापार हो गया है घिनौना
दूल्हा बाजार में दूल्हा बिकाऊ है,
दूल्हे का बाप सेल्समैन की भूमिका में आ चुका है
दूल्हे की कीमत पर मां की मुहर लगती है,
वहीं मां जो खुद को औरत कहती है
वहीं औरत दूसरी औरत की दुश्मन बनती है
बेटा भले हो नल्ला,पर स्कूल गया हो
कालेज में प्रवेश ले लिया है
भले ही परीक्षा पास न कर पाया हो कोई
कीमत भारी हो जाती है,
दूल्हा गर, सरकारी सफाईकर्मी हो,
चपरासी, पटवारी, स्कूल का मास्टर हो
कीमत पहाड़ जैसी
अच्छे ओहदेदार पर हो गर दूल्हा
दूल्हा बाजार में तो कीमत एवरेस्ट हो जाती है
बेटी का बाप ज़हर खाने की सोचने लगता है
क्या समझे अब बेटी का बाप ?
बेटी का जन्म सौभाग्य या दुर्भाग्य ?
यह जाल कौन बुन रहा है?
महिला या पुरुष ? पुरुष तो कतई नहीं
उच्च शिक्षित लड़की,
मामूली से पढ़े लिखे दिहाड़ीकर्मी,
आजकल जिसे संविदा कहते हैं
पहली और दूसरी तुला पर सुयोग्य साबित हो जाती है
वहीं सुयोग्य कन्या ,
दहेज की मेज पर जब दो-चार चक्का के साथ,
ज़ेवर, और भारी भरकम रकम जो,
दूल्हे के मां -बाप ने देखी तक नहीं होती
दहेज की सूची को सुनकर,
बेटी का बाप गश खाने लगता है
दूल्हे की कीमत चुकाने में
असमर्थ लगने लगता है
दूल्हा पक्ष लगा देता है
एक सुघड़, सुयोग्य,उच्च शिक्षित,सुलक्षणा बेटी पर लगा कर सांवली, बदसूरती की मुहर
कर देते हैं ब्याह करने से मना
षणयन्त्र की मुख्य भूमिका में होती हैं औरतें
दूल्हे की मां, मौसी,बहन,भौजी या और कोई औरत
उजाड़ देती है घर बसने से पहले
मर जाते हैं, खतरे में आ जाती हैं
कई जिन्दगियां,
दहेज समाज का कैंसर हो गया है
इलाज़ कानूनन हो सकती है
सरकार बना दे मैरेज मिनिस्ट्री
हर युवक -युवती का हो पंजीयन
ब्याह हो कचहरी के सुपुर्द्
दहेज पर लगे पूर्ण प्रतिबंध
उलंघन करने वालों को मिले,
कठोर सजा,
दहेज दानव को काबू में है करना
सरकार को अब कमर कसना ।
नन्दलाल भारती
०१/१०/२०२३
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