दलित और गांव
हमारा गांव नहीं साहब
भूलभूलैया है
जाकर तो देखो
गांव में पुरवा वह भी एक दो नहीं
जितना जाति/बिरादरी उतना
अभिशापित दलितों की बस्ती
कभी कहते थे चमरौटी
तनिक जनजागृति आई
कहने भर को थोड़ा मान बढ़ा
आज भी बस्ती के खिलाफ बहता है
तेजाब का दरिया, जहां डूब कर जीना पड़ता है ।
हम कहां फंस गए दलितों की बस्ती में
बस्ती हैं जो गांव के दखिन में
या तो पछिम में ताकि
अपवित्र हवा भी छू न सके
उच्चवर्णिक आबोहवा
दलित बस्ती के कुये का पानी
पहले भी था अपवित्र
कुये जब थे जीवित ।
आज तो हैण्ड पम्प का पानी भी
अपवित्र और है अछूत
ये है हमारी दलित बस्ती
चलो साहब देख लो,
जहां आज भी
आरक्षण और शिक्षा से वंचित हैं लोग
डंस रहा जातिवाद का महारोग आज भी।
नोना -नटो की बस्ती का भी
बहुत बुरा हाल
अभी तो पूरी दलित बस्ती का
नहीं हुआ अवलोकन साहब
और भी परवे,टोले -महल्ले है गांव में
गांव के माथे पर बभनौटी,
फिर ठकुरान
बहुत भूलभूलैया है गांव साहब
नोनियान,लोहरान,कोहरान,
धोबियान,भरौटी, अहिरान या अहिरौटी
और भी बहुत टोले मुहल्ले जो
गांव को गांव नहीं भूलभूलैया बनाते हैं साहब।
हमारा गांव बस एक गांव नहीं है
कई पुरवों मुहल्लों या टोलों का
असंगठित रुप हैं,
जहां जातीय खंजर के बवण्डर उठते रहते हैं
हम जिसे दिल और दिमाग से गांव कहते हैं ।
गांव जाइये साहब किसी पकडण्डी पर
खड़े हो जाइए और
किसी धूलचन्द फूलचंद रुपचन्द का पूछिये नाम
सचमुच साहब आप हैं जायेंगे हैरान।
बताने वाला उल्टे पूछेगा आपसे साहब
कौन जात का है
धूलचन्द, फूलचंद या रुपचन्द ?
जात मालूम है या हो गई तो
पता मिल जायेगा साहब
वरना पूरे गांव का चक्कर लगाकर
चक्कर आ जायेगा आपको साहब।
दुर्भाग्यवश दलित का पता पूछ रहे हैं
गैर दलित से तो बताने वाला
मैं नहीं जानता देगा जबाब
ये हाल है आजाद देश के गांव का साहब ।
कई बार तो डाक भी वापस हो जाती हैं
मनीआर्डर तक गुम हो गये दलितों के
सच में साहब गांव हमारा भूलभूलैया है
परन्तु गांव की मांटी में अमृत है
किन्तु जातिवाद ने जहर बना दिया है साहब ।
जातिवाद के जहर ने अब
ईसाइयत को आमंत्रित कर दिया है
जहां नाम न था,
वहां ईशु चर्चा हो रही है गांव गांव
कैसे बचेगा अब गांव साहब ?
था अब तक बहु-जातिवाद का दंगल
हो गया है अब बहु-धर्म का शंखनाद ।
दलित पिस रहा था जातिवाद की चक्की में
अब पिसेगा बहु-धर्म की चकरघिन्नी में
दलित और गांव दोनों के अस्तित्व पर
खतरा है घोर
नहीं कोई सुन रहा है शोर साहब
संविधान पर तो पहले से था खतरा
अब तो भारी डर कहीं मिट न जाये
डॉ अम्बेडकर का त्याग,दलित और गांव
सच में है ना साहब भूलभूलैया है अपना गांव।
नन्दलाल भारती
०२/०८/२०२३
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