Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

दर्द

 

कितना दर्द होता है
ड्योढ़ी को लांघने से
दूरी अपनो से भयाक्रांत कर देती है
दर्द का बोझ लेकर भी
छोड़ना पड़ता है
घर द्वार सगे समन्धित
खून के रिश्ते भी
कमाया जा सके खनकते सिक्के
रोटी कपड़ा मकान और
पूरी करने के लिए जरूरते
जोड़ तोड़ में उम्र का बसंत
खो जाता है
जरूरतें मुंह बाये खड़ी रहती है
बचता है तो पिचका हुआ गाल
शरीर का बोझ उठाने में
असमर्थता जाहिर करते हुए
घुटने
धुंधली रोशनी लिए हुए
चक्ष
बीमारियों से घिरा शरीर
अपनी जहाँ में लाख सद्कर्म के बाद भी
नहीं संवरती तकदीर।
जातीय अभिशाप बन जाता है पाप
लाख पुण्य कर्म भी नहीं धो पाते
पाप ।।।।।।।

 

 


डॉ नन्दलाल भारती

 

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ