Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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देश धर्म

 

कैसे होगा,असली आजादी का, सपना साकार,
कब बसेगी खुषहाली षोशित के द्वार
दे रहा मां के आंखों को आंसू
आमजन का हक लूट रहा भ्रश्ट्राचार,
नफरत जातिवाद का हो रहा प्रसार,
वक्त बुरा आओ करें विचार,
गिद्ध नजर पड़ी है,
टूट रही सब्र की घड़ी है,
लोकतन्त्र लहूलुहान आ भर रहा,
लोकतन्त्र के रक्षक भ्रश्ट्राचार बो रहे,
ईमानदारी,वफा,सत्य परेषान
हाड़फोड़-फोड़ कराह रहा षोशित इंसान,
विज्ञान का युग पर ना मिटा जातिवाद,
ना लूटी नसीब हो सकी आजाद,
अपनी जहां में कैसे होगा विकास ...?
क्या यही था आजादी का मन्तव्य,
स्वार्थ में रक्षक भूल गये गन्तव्य,
षोशण,अत्याचार,बलात्कार,भ्रश्ट्राचार,
नियति में समाया,
खून के बदले आजादी का मान घटाया,
आओ करे विचार,
आम आदमी षोशित वंचित का हो
विकास,
समता-सदभावना राश्ट्रहित का गूंजे नारा,
भारत के लोगों जागो,
अब जाति -धर्म द्वेश नहीं
देष धर्म हो हमारा.....डां नन्दलाल भारती
कलम का सिपाही/कविता
जिन्दगी के ख्वाब थे,अपने भी हरे-भरे
वाह रे कैद नसीब के मालिक
धरातल पर जब-जब उतरे,दिल रोया पाँव जले.............
हाल क्या बयाँ करूँ,निषान दहकते दाग बन चुके,
निरापद को सजा ऐसा,भविश्य दहल गया,
हरा-भरा ख्वाब पतझर बन गया.......
बदला युग,दर्द का ना थमा,सिलसिला,
सपने कत्लेआम वही जहां
जीवन का मधुमास बिता..........
दहकते घाव पर,ना हार ना रार
उसूल की राह चलता रहा,
मरते सपनों का भार थामें,
घण्टी की तरह बजता ही रहा...
कलम साथ,करने की जिद
आखिर,बयार ने रूख बदल दिया,
आस के बाग उग गये
जीने के सहारे मिल गये.........
करामात ये जमात,दर्द से भरे ह वही
पर,साथ जमात है
यही कर्म की सौगात है........
बरखुर्दार,हम तो दीवाने
समय के पुत्र दर्द पीते हैं
जहां के लिये जीते है............
ढ़ाढस यही अपना भी,हौषले की स्याही से
षब्द बीज बोता चला गया,ना टूटे कसमें वादे,
कलम का सिपाही कहा गया....

 

 

डां नन्दलाल भारती

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