Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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देशहित -जनहित में

 

अपनी जहां में ,
सत्ता के भूखे सौदागर
सत्ता पर कब्ज़ा के
हर अवगुण सीख गए।
सामंतवाद की मौन आंधी,
आज भी बसती है
लोकतंत्र को प्रजा-तंत्र कहती है।
अपनी -अपनी जहां में आज़ाद
हमसब जाति -धर्मवाद
नफ़रत-भेदभाव की ,
खोखली शान में उलझे,
पिछड़े रह गए।
अपनी -अपनी जहां में
खंडित-विखंडित लोगो को
मुंगेरीलाल हसीन सपने दिखाना
रास आ गया।
यही छल -भेद जहां में
लोकतंत्र/जनतंत्र का
दुश्मन हो गया।
अरे देश के सपूतो
लोकतंत्र के सच्चे सिपाही
नौजवानो जागो
लोकतंत्र की अस्मिता बचाओ
संविधान को
राष्ट्रीय धर्मग्रन्थ बनाओ
शोषितो के ख्वाब को
पूरा कर दिखाओ
सत्ता के सौदागरों को,
दूर भगाओ।
उजड़ी बस्ती में
लोकतंत्र की असली
ज्योति जला दो
देश के सच्चे सपूतो उठो
आगे बढ़ो लोकतंत्र को
इन्तजार है तुम्हारी
देशहित -जनहित में तुमसे
विनती है हमारी

 

 


डॉ नन्द लाल भारती

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