धुंआ के मिजाज
धुंआ के कई मिजाज हैं साहब
सृजन और विनाश भी
होठ पर सुलगते बीड़ी सिगरेट
लम्हें के लिए तो मजा उगलते हैं साहब
यही जब शरीर के आन्तरिक अंगों से
रार करता है
तब यही असाध्य रोगों का
जनक बन जाता है
कभी -कभी मौत का पैगाम भी
सच साहब धुंआ के क्या क्या मिजाज हैं....
यही धुंआ जब गांव के
कच्चे -पक्के घरों से उठता है तो
उम्मीद जगाता है
घर वापसी का शंखनाद करता है
नये उत्साह,नई सुबह का,
आगाज़ करता है
सच साहब धुंआ के क्या-क्या मिजाज हैं....
धुंआ जब किसी शहर से उठता है
तब यही धुंआ कुछ और कहानी कहता है
मसलन साम्प्रदायिक दंगे,जातीय संघर्ष
अर्थात ताण्डव,आतंक, चीख-पुकार और विनाश
कभी -कभी तो कायनात,
दहल जाती है और
सहम जाती है आदमियत
बढ़ जाता है विनाश
थम जाता है सृजन
आओ मिजाज को समझे
धुंआ के क्या-क्या मिजाज हैं ?
धुंआ के विनाशकारी मिजाज को,
रोक लो ......अब रोक लो साहब ।
नन्दलाल भारती
०२/०९/२०२३
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