Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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फैसला

 
लघुकथा :फैसला
चरित्रहीन माँ-बाप की बेटी आंशिका रमन बाबू के घर बहू बनकर आते ही अपनी सास से बोली अम्मा जी सुधारजी तो बहुत सीधे हैं, इनको तो मैं पल्लू से बांधकर रखते सकती हूँ और वही की आंशिका ने सुधारशरण को मां बाप और परिवार से अलग कर दी।सुधार के तन मन और कमाई पर पूरी तरह काबिज हो गयी।पांच साल के बाद सुधार के इश्क़ का खुमार जब उतरा तब तक वह पूरी तरह बर्बाद हो चुका था अब उसे उसको माँ बाप, भाई-बहन और घर -परिवार की याद आने लगी जो आंशिका और उसके माँ बाप को नहीं भा रहा था। परिणाम स्वरूप दहेज का मामला दर्ज हो। कई साल के बाद फैसले की घड़ी आयी। फैसला सुधार के पक्ष में, आर्थिक दण्ड के साथ आंशिका के मां बाप को जेल हो गई। फैसला से आहत आंशिका के आगे खाईं पीछे डरावनी परछाईं दिखने लगी, लाचार बेबस आंशिका को देख सुधार के मां-बाप बेटी प्रायश्चित हो गया हो तो आओ घर चले। इतना सुनते ही आंशिका सास-ससुर के चरणों में लेट गयी। 
सुधार बोला बाबूजी क्या कर रहे हैं? 
बेटा जब इंसान चरणों में गिर जाये तो माफ कर देना चाहिए । ये मेरा फैसला है रमन बाबू बोले। 
ठग दम्पति का क्या करोगे सुधार पूछा। 
रमन बाबू कुछ बोलते उनसे पहले आंशिका बोली असली गुनाहगार है, उन्हें सजा मिलनी ही चाहिए बाबू जी। 
रमन आंशिका के सिर पर हाथ रखते हुए बोले बेटी उन्हें भी एकबार सुधरने का मौका तो मिलना चाहिए। 
नहीं बाबू जी....... नहीं आंशिका बोली। 
नन्दलाल भारती

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