मैं वंदना करता हूँ ऐसे इंसान की ,
बोटा है बीज जो सद्भावना का ,
रखता है हौशला त्याग का।
मेरा क्या मैं तो दीवान हूँ ,
इंसानियत का ,
भले ही कोई इल्जाम मढ़ दे
या कहे पाखंडी ,
या दे दे दहकता कोई घाव नया।
निज-स्वार्थ से दूर
पर- पीड़ा से बेचैन इंसान में ,
भगवान् देखता हूँ ,
दूसरों के काम वालों की,
वन्दना करता हूँ।
साजिशो से बेखबर ,
सच्चा इंसान खोजता हूँ ,
जानता हूँ हो जाऊँगा फना ,
फिर भी डूबता हूँ
तलाशने पाक सीप ,
हो जिसमे संवेदना ,
उसे माथे चढ़ाना चाहता हूँ।
सच ऐसे लोग ,
परमार्थ के यज्ञ में होकर फना,
देवता बन जाते है ,
ऐसे देवताओ की ,
वंदना करता हूँ।
डॉ नन्द लाल भारती
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