जनून,प्रतिबद्धता,समयबद्धता पर क्या ?
समर्पण कार्यकौशल आहत है
यहां आदमी की बस अपनी चाहत है ।
क्या ससही क्या गलतख्परवाह नहीं
आदमी यहां स्वयं बनता सही ।
मनी माइण्डेड,कायदे ताख पर रख देता है,
स्वार्थ की दीवाना अपनी थाप देता है।
सेवाकर्म-फर्ज असि की नोंक पर,
अटक जाता है,
स्वार्थी आदमी जिद पकड़ कर,
बैठ जाता है।
दुखी नहीं पर दुख की बात तो है
पापी पेट का सवाल जो है ।
मनी माइण्डेड कौरव के रथ पर,
धमक जाते हैं,
असि भांज कर औकात दिखा जाते है।
यहां पल-पतिपल इम्तहान है,
मनी माइण्डेड मतलबवश करता परेशान है।
फर्ज की छाती पर कटार नही,
यहां वही होता है
कायदे कानून को जो मंजूर होता है।
डां.नन्दलाल भारती
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