हवेली का सच
शीतनाथ, देखने में सहज,सरल और शीलवान थे।शीतनाथ का अपने गांव में ही नहीं आसपास के गांवों में उनका दबदबा था। शीतनाथ की रेवेन्यू विभाग में नोकरी भी थी। जिस -जिस क्षेत्र में पदस्थापना हुई उस गांव की कुछ गांव समाज की ज़मीन के मालिक भी बन गए थे। वैसे तो गांव के हर जमींदार ने गांव समाज की जमीन पर अबैध रूप से कब्जा जमाये हुए था। शीतनाथ तो जमीन के पारखी थे। अपने गांव की जमीन पर पड़े पौधे लगाकर हड़प रहे थे। पोखरी तालाब मछली पालन के नाम परिवर्तित। वहीं दूसरी ओर गांव के दलितों के पास पेशाब करने तक ठाकुरों के खेत में जाना पड़ता था। दलितों के दरवाजे तक जमीदारों के खेत।
गांव के सभी दलित दबंगों के भूमिहीन खेतिहर मजदूर अथवा बंधुआ मजदूर थे परन्तु कृषि ज्ञान से भरपूर धनी थे, हवा के रुख से मौसम के मिजाज को बता देते थे। गांव के सबसे बड़े जमींदार शीतनाथ और उनके परिवार का बड़ा दबदबा था। वैसे तो पूरे के कमजोर वर्ग के लोग ठाकुर शीतनाथ की मजदूरी करते थे परन्तु फलतू,गनकू,मनदू,लटरु,लुटई ये पांचो बंधुआ मजदूर थे । रमई तो चौबीस घण्टे का नौकर था। हवेली का बचा खुचा खाना रमई को मिल जाता था। गांव की पोखरी के किनारे दो बीसा गांव समाज की जमीन जमींदार शीतनाथ ने रमई को अपने पुरखों की जमीन बताकर दे दिया था।रमई को चौबीस घंटे की मजदूरी दो सेर अनाज मिलता था। तीनों टाइम जमींदार की हवेली का बचा खुचा नाश्ता और खाना।
फलतू,गनकू,मनदू,लटरु,लुटई को शीतनाथ ने ऊसर और गांव समाज की जमीन मिलाकर दस-दस बीसा जमीन इन हलवाहो को दे रखा था।इन हलवाहो को सुबह से देर रात तक की मजदूरी दो सेर अनाज मिलती थी। ठगिन जमीदारन अनाज में गांठ भूसी तो मिलाती भी,कभी पूरी मजदूरी नहीं दी। मजदूरने जमींदार-जमींदारन को कोसती और आंसू गारती वापस लौटती थी।लुटई का शरीर जब थकने लगा तो सड़क के किनारे पकौड़ी की दुकान खोल ली । रमई का जब आंख ठेहुना काम बन्द कर दिया तो हवेली से बाहर कर दिया गया। रमई और उसकी पत्नी खाना -पानी बिना रिरक-रिरकर लावारिस जैसे मर गये। रमई का पौरुष क्या थका जमींदार की हवेली के दरवाजे रमई के लिए एकदम बंद हो गये थे। जमींदार ने जो दो बीसा गांव समाज की जमीन दिये थे वह भी छिन लिये । रमई बचपन से जब तक पैरुष चला बेचारा जमींदार की हवेली का गुलाम रहा, इसके बदले बेचारे को क्या मिला-दर -दर की ठोकरें और लावारिस जैसी मौत । रमई की दुर्दशा देखकर मनदू शहर की ओर रुख कर लिया पर इस दु:साहस का उसके परिवार को नुकशान भुगतना पड़ा था।
फलतू और गनकू जमींदार की हवेली से जुड़े रहे।शीतनाथ बड़े घाघ किस्म के जमींदार थे। गनकू चुटकी भर सुर्ती से और फलतू चिलम भर गांजा से ठाकुर के मुरीद हो गए थे।
सभी मजदूरों में सबसे अधिक वफादार फलतू था।शीतनाथ फलतू पर विश्वास तो करते थे और शोषण भी । मजदूर तो सभी किरन फूटने से पहले जमींदार की हवेली पहुंच जाते थे,देर से वापस भी लौटते थे। फलतू को तो ज्यादातर अपने बच्चों का मुंह देखने का मौका नहीं मिलता था।खाने में नून -रोटी जो भी होता उसकी पत्नी शान्तादेवी उंघते जागते बैठी रहती। फलतू को हवेली की बेगारी से आधी रात से पहले कभी छुट्टी नहीं मिली। भले ही पूरी रात हवेली की चाकरी में बीत जाये,पर रोटी को कोई नहीं पूछता था जैसे मजदूर को भूख नहीं लगती।सूरज उगने तक ठाकुर की चौखट पर तो मजदूरों की हाजिरी जरूरी होती थी।
जमींदार की हवेली का दबदबा सरकारी विभागों तक था। गांव की नीतियों को जमींदार की हवेली में अमलीजामा पहनाया जाता था। क्षेत्र के विधायक मन्त्री, पुलिस थाना तक जमींदार की हवेली की हवा का रसास्वादन करते थे। जमींदार की हवेली का यह रूतबा फलतू को भाता था।शीतनाथ के अधीन फलतू जमीदारों के शौक का आदी हो गया था। शराब, गांजा,बीड़ी,सुर्ती और शिकार के शौक उसके लिए जीवनदायिनी थे। जमींदार शीतनाथ ने फलतू को गांजा की ऐसी लत डाल दी थी कि उसे गांजा न मिले तो वह पागलों जैसी हरकत करने लगता था। फलतू गांजा के लिए लू, धूप और बरसात कुछ नहीं देखता था। आग बरसती धूप से भी परहेज़ नहीं करता था। गांजा के लिए कुछ भी करेगा,शीतनाथ ने ऐसी आदत डाल दिया था कि फलतू गांजा को भगवान का प्रसाद कहता।शीतनाथ खुद नशे से कोसों दूर थे, परन्तु मजदूरों को नशे की दलदल में ढकेलने से परहेज़ नहीं करते थे।
शीतनाथ मजदूरों से बेगारी करवाने के लिए ऐसी लत डाल देते थे कि फलतू जैसे मजदूर कुत्ते की तरह आगे पीछे दुम हिलाते रहते थे। शीतनाथ का परिवार बहुत बड़ा था।देखा जाए तो शीतनाथ और शीलनाथ मजदूरों के लिए तनिक ठीक थे।शीतनाथ के चचेरे भाई तो नरपिशाच थे। ये शैतान तनिक भी लिहाज नहीं करते थे। आदमियत का चीरहरण कर देते थे। दलित बच्चा लाल जो बम्बई में नोकरी करता था, नौकरी छोड़ कर गांव आ गया था।एक बार बच्चालाल कि किसी बात को लेकर शीतनाथ के चचेरे भाई क्रुद्धनाथ से कहा सुनी हो गई। धमकी देकर क्रुद्धनाथ तो चला गया पर घायल शेर की तरह ऐसा पलटवार कि पूरी जगहंसाई हो गयी ।
क्रुद्ध नाथ ने बच्चा लाल ,कच्चालाल और दलित बस्ती के कुछ नवयुवकों के खिलाफ थाने में झूठी चोरी की केस लिखवा दिया । जमींदार की हवेली छावनी बन गई थी। दलित बस्ती के बच्चा लाल और उसकी उम्र के कई जवानी की दहलीज पर पांव रख रहे लड़कों को पुलिस उठाकर जमींदार की हवेली ले गयी सभी लड़कों की हड्डी पसली एक कर दिये। क्रुद्ध नाथ ने बच्चा और चचेरे भाई कच्चा तनिक हथलपाक था पर डकैत नहीं था ।बच्चा का तो चोरी चकारी से कोई नाता नहीं था। पुलिस कुछ लोगों को जानवर की तरह जीप मे ठूंस कर थाने की ओर चल पड़ी । रास्ते में बारी से पुलिस डण्डा बरसती और रास्ते में उतार देती। पुलिस बच्चा लाल और कच्चा लाल को थाने ले गई और पुलिस वालों ने पानी पी -पीकर मारते और गाली देते कहते चमारों की हिम्मत देखो बाबू साहब के घर में डकैती कर रहे हैं, जितनी बार बच्चा कहता साहब हमने चोरी नहीं की है, उतनी भयंकर मार पड़ती, आखिरकार मार मार कर पुलिस वालों ने बच्चा को अधमरा कर दिया हारकर दोनों ने हामी भर लिया।मार-मार कर यह भी कहलवा लिया कि चोरी का माल जमींदार की हवेली के पीछे की पोखरी में छिपा रखा है जबकि पोखरी में पच्चीस से तीस फुट गहराई तक पानी भरा था। पोखरी के किनारे बांस और पानी में बेशर्म की भयंकर झाड़ियां थी।यह दलित शोषण, अमानवीय कार्रवाई शीतनाथ के चचेरे भाई क्रुद्धनाथ, बरखानाथ और रतीनाथ के इशारे पर गांव के दलितों को डराने -धमकाने का नाटक चल रहा था।
बच्चा और कच्चा की झूठी चोरी की स्वीकृति के बाद पुलिस दोनों को खूंखार डकैतों की तरह जमींदार की हवेली लाई और झूठी चोरी के माल की बरामदगी के लिए पोखरी में दोनों को फेंक दिये।अधमरे झूठे मुलजिम पुलिस के इशारे में सुबह से शाम तक पोखरी में गोताखोरों की तरह डूबते -उतियराते रहे। मिला कुछ भी नहीं आखिरकार शीतनाथ के हस्तक्षेप पर दोनों को पोखरी से बाहर निकाला गया । शीतनाथ को शायद डर था कि जमींदार की हवेली द्वारा घोषित झूठे डकैत कहीं ठण्डे पानी में अकड़ कर मर ना जाये और बात बिगड़ जाए,यह सब नाटक कागज पर था नहीं सिर्फ मौखिक स्क्रिप्ट थी।
जमींदार की हवेली शोषितों के दर्द, शोषण -उत्पीड़न, कराह और आंसू से तो दबी हुई थी अब तो निरापदों पर झूठे चोरी के इल्जाम और लहू से अपनी बर्बादी पर आंसू बहा रहा थी। क्रुद्ध नाथ,बरखनाथ और रतीनाथ दलितों के दर्द पर खुशी के पटाखे फोड़ रहे थे। बच्चा और कच्चा को पुलिस पोखरी से बाहर निकाल कर एक बार फिर धुलाई की और धुलाई के बाद हवेली के मुखिया के सामने हाथ जोड़वा कर बैठा दिये । इसी हवेली से गांव की नीति निर्धारित होती थी। गांव का प्रधान सवर्ण ही होता था।इस गांव में कभी सवर्णों ने आवण्टन होने ही नहीं दिया, हुआ भी तो लीपापोती जिसकी वजह से गांव समाज की जमीन पर सवर्णों का स्थाई कब्जा हो गया। दलित पनप कभी नहीं पाये और उनके मजदूर बने रहे,अगर कोई सिर उठाता पूरी तरह कुचल दिया जाता, इसके पहले रामीनाथ,खतवारु और भी कई लोगों के साथ ऐसे काण्ड हो चुके थे,बच्चा लाल के अत्याचार कोई नया नहीं था।
बच्चा और कच्चा को पुलिस ने संगीन अपराधियों की तरह बैठा रखा था। एक पुलिस वाले ने बच्चा को लात मारा और लुढ़क कर गिर गया। यही कच्चा का भी हाल हुआ। बच्चा सम्भल कर बैठ पाता तब तक पुलिस वाला कान ऐंठते और भद्दी गालियां देते हुए बोला -मांग लो बाबू साहब से माफी वरना जेल की चक्की जीवन भर पीसना पड़ेगा।
बच्चा बोला साहब किस बात की माफी ?
अपने गुनाह की माफी पुलिस वाला बोला।
जो हमने किया ही नहीं उस गुनाह की माफी कैसे मांग लूं बच्चा बोला।
रात में तुम दोनों ने तो बाबू साहब की हवेली में चोरी करना कबूल किया था।
साहब वह तो दरोगा साहब मार-मार कहलाते, हमने तो जान बचाने के लिए कहा था। हमने कोई चोरी नहीं किया है,मैं अपराधी नहीं हुई अपराध है तो बस मेरी जाति का साहब बच्चा बोला।
इतने में कच्चा लाल बोला साहब आप लोग भी जानते हो, हमने चोरी नहीं किया है। हमें क्यों बलि का बकरा बना रहे हैं । मारना ही है तो उठाओ बन्दूक मार दो गोली,कर दो एनकाउंटर,अब दर्द बर्दाश्त नहीं होता । झूठ को सच साबित करने वालों की कहां कमी है।पूरा गांव पंचनामा पर दस्तखत कर देगा, चला दो गोलियां। पूरा गांव आप लोगों की बहादुरी के लिए सरकार से इनाम की सिफारिश भी करेगा।
जमींदार की हवेली में पूरा गांव समाया हुआ । कच्चा और बच्चा लाल के परिवार का रो रो कर बुरा हाल था, दलित बस्ती मुर्गों के बाड़ की तरह हो गई थी। यह सुलगती दास्तान आजाद भारत की है जहां आज विज्ञान के युग में आदमी की पहचान उसकी सख्सित से नहीं जाति से होती है।भला हो अंग्रेजी शासन का जिसने अछूतों-शोषितों को भी आदमी समझा।देश का संवैधानिक धर्म ग्रंथ भारतीय संविधान ने तो दलितों आदिवासियों के जीवन में तो क्रांति ला दिया। संविधान के निर्माता विश्वरत्न डां भीम राव अम्बेडकर शोषितों दलितों के दैवीय सत्ता प्रतिनिधि साबित हुये। भारतीय संविधान सभी देशवासियों को समानता का अधिकार देता है, इसके बाद भी दलित दमन जारी है। सोचिए परतन्त्र भारत में क्या हाल करता होगा आदमियत विरोधी मनुस्मृति उत्प्रेरित सवर्ण समाज और उसकी अग्रपंक्ति के लोग। दलितों -शोषितो को गुलाम बनाते रखने की मानसिकता पर लगाम ही नहीं लग पा रही है। बच्चा और कच्चा जैसे लोगों की हड्डियां तक चटकायी जा रही है कितनों की आबरू लूटी जा रही है कितनों की जान तक जा रही है।
झूठे केस में बच्चा और कच्चा अधमरे हो चुके थे। कच्चा का शहर में छोटी मोटी नौकरी करता था,वह जान बचाने के लिए शहर चला गया।खुद के बेटों की क्रिकेट टीम बनाने की ख्वाहिश लिए बच्चा लाल आधा दर्जन से अधिक बेटो का बाप बन चुका था। हर साल बेटा पैदा कर उसकी घरवाली भरी जवानी में दिन पर दिन बूढ़ी हो रही थी। बूढ़ी मां को उम्र की बीमारी बुरी तरह तोड़ चुकी थी। कमाई का कोई ठोस जरिया भी नहीं था,बस मेहनत मजदूरी। ठाकुर शीतनाथ ने तो माफी दे दिया था पर क्रुद्ध नाथ , बरखनाथ,रतीनाथ और शीतनाथ के बड़े बेटे बन्जय कुंवर का डर था।
बन्जय कुंवर तो इतना बदमाश था कि अपने ही परिवार के एक आदमी पर हवेली के पीछे की पोखरी में खाने के लिए मछली पकड़ने पर बंदूक तान दिया तो यह दरिन्दा शोषितों के लिए कितना ख़तरनाक हो सकता था।शीतनाथ का दूसरा बेटा धन्नजय शरीफ था। बदमाश काकाओ की सोहबत ने संजय को बदमाश बना दिया था। इसलिए शीतनाथ की माफी के बाद भी खतरा टला नहीं था। कच्चा अपने बाप के पास शहर चला गया। बच्चा अपना जम्बो परिवार को छोड़कर जा भी कहीं नहीं सकता था, वैसे भी पुलिस की मार के बाद दस कदम ठीक से चल भी नहीं पा रहा था। पुलिस की मार ने उसके शरीर के पुर्जे पुर्जे को लहूलुहान कर रखा था।
बच्चा घोर आर्थिक संकट से गुजर रहा था। दवाई तक के पैसे नहीं थे। बच्चा की मां और उसकी घरवाली के आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे। अस्पताल में भर्ती कर इलाज करवाना बहुत मुश्किल था। हल्दी प्याज का लोप दोनों सास-बहू करती,साल भर सूकर के तेल से पूरे बदन की मालिश कर धूप में सूला देती,यह सिलसिला साल भर से अधिक चला पर कच्चा मौत के मुंह से निकल कर चलने -फिरने लगा। कच्चा लाल की बूढ़ी में आंसू पोंछते हुए कहती बेटा जिन दबंगो ने तुम्हें मौत के मुंह में झोंका है,उनका नाश होगा, जमींदारों की हवेलियां हम गरीबों के लिए तो कसाई के ठीहे जैसी हो गई हैं,पोथी-पतरा वाले आग में घी डालने से बाज भी नहीं आते, रूढ़िवादिता का जहर दिमाग में भर रहते हैं। मैं तो नहीं रहूंगी पर दुनिया जमींदार की हवेली के सच पर थू थू करेगी ।एक दिन जमींदार की हवेली का नाश हो जायेगा, दीया बत्ती जलाने वाला कोई न होगा। भगवान के घर में देर है अंधेरा नहीं। बच्चा तू खुद की हवेली की सुख विलास करेगा बेटा । एक दिन दुनिया जमींदार और उसकी हवेली का सच जरूर जान जायेगी।
समय बदला बच्चा लाल के बच्चे मेहनत मजदूरी के काम में लग गए। बच्चा लाल की गाड़ी चल पड़ी। एक बेटा नौकरी करते करते विदेश पहुंच गया। बच्चा के घर विदेशी मुद्रा आने लगी।उधर हवेली की उलटी गिनती शुरू हो गई क्रुद्ध नाथ के बदमाश बेटे की संदिग्ध अवस्था में मौत हो गई,एक बेटा पागल हो गया । परिवार बिखरने लगा।शीतनाथ की मौत के बाद धीरे धीरे हवेली खण्डहर में तब्दील हो गई। क्रुद्ध नाथ को छोड़कर सभी हिस्सेदार अपनी अपनी जमीन जायदाद का हिस्सा बेच कर शहर की ओर रुख कर लिए।जिस हवेली में बड़े बड़े साहब-सुबा तक रूकते थे ।उसी हवेली में कोई दीया जलाने वाला न था।रात में सियार सियारिन जरुर चिल्लाते ।
इधर बच्चा के खपरैल घर की जगह पक्की हवेली खड़ी हो गई। जमींदार की हवेली खण्डित मूर्ति होकर एक दिन जमींदोज गई । फलतू हवेली का एकमेव वफादार नौकर बचा था, वह अपने वादे का पक्का था, उसके श्रम से उसके दोनों बेटे भाग्य चंद और लाभचंद अपने पांव पर खड़े हो गए थे बेटियां अपनी गृहस्थी में रच बस चुकीं थीं किसी बात की कोई कमी नहीं थी । फलतू था कि हवेली से आजीवन जुड़ा रहना चाहता था। जिस शीतनाथ और शीलनाथ का बस्ता जो स्कूल तक ले जाता था। वे दोनों भाई दुनिया छोड़ चुके थे,शीलनाथ का परिवार पहले से शहर का स्थाई निवासी हो गया था पर शीलनाथ का रिश्ता गांव से अटूट था पहले शीलनाथ की बाद में शीतनाथ की मौत हो गई। फलतू को शीलनाथ तवज्जो देते थे। शहर में किसी ऊंचे पद पर काम करते थे जब भी कभी शहर से गांव आते हवेली से लेकर बाहर सरकारी सड़क तक एक से बढ़ कर एक कारें खड़ी हो जाती शायद इस गांव ने इतनी कार भूत में कभी न देखी होगी। शीलनाथ का बड़ा बेटा मित्रनाथ तो फलतू की थाली की रोटी भी खा लेता था। इस व्यवहार के लिए हवेली के बड़े बूढ़े डांटते भी परन्तु शीलनाथ मुस्करा भर देते।
कूल्हे के आपरेशन के बाद तो फलतू डेढ़ टांग का हो गया था,वह और उसका पूरा कुनबा ईमानदार और निश्छल था। डेढ़ टांग का होने के बाद भी उसका हवेली से मोहभंग नहीं हुआ। अचानक एक दिन बूढ़ी हवेली के सामने कुछ गाड़ियां खड़ी देखकर फलतू के कान खड़े हो गए।वह डेढ़ टांग का आदमी हवेली पहु़चा वह बंजय कुंवर को देखकर बोला छोटे मालिक कब आये।
बंजय कुंवर गुस्से में बोला -तुम से पूछकर अब आना होगा क्या ?
फलतू -इतनी नाराजगी क्यों ?
बंजय कुंवर-तुम को किसने बुलाया है,अब हवेली को तुम्हारी जरूरत नहीं,चले जाओ।
फलतू -हवेली में हिस्सा नहीं मांगने आया हूं। बंजय बाबू शीतनाथ शीलनाथ की मोहब्बत खींच लाती है, वरना जैसों से कौन मिलना चाहेगा। हवेली पर ही नहीं तुम्हारे उपर मेरे एहसान
मेरी पत्नी के हाथों तुम पैदा हुए।अपनी मां से पहले तुम मेरी पत्नी की छाती का दूध पीये थे।मेरे साथ इतनी बेरुखी ?
बंजर कुंवर -फलतू दायी का काम था, उसने किया। इसके बदले हवेली से मजदूरी भी तो मिली होगी फोकट में कुछ करते हो क्या? तुम को किसने बुलाया है। तुम्हारा हवेली से नाता पिता जी के साथ दफन हो गया। हवेली का मालिक मैं हूं। मुझे क्या करना है मालूम है।
मैंने तो कोई दखल अंदाजी किया नहीं। मुझे अपनी हद मालूम है परन्तु बंजयकुंवर तुमको नहीं मालूम है फलतू बोला।
जा रहे हो फलतू की तुमको उठाकर बाहर फेंकू बंजय कुंवर बोला।
विनाश काले विपरीत बुद्धि........ अलविदा हवेली कहकर जैसे ही फलतू हवेली का मुख्य द्वार लांघा हवेली का एक कोना भरभरा कर गिर पड़ा ।
डेढ़ टांग का फलतू जैसे बस्ती पहुंचा बच्चा खासते हुए बोला क्या हुआ भैया हवेली में हिस्सा मिल गया।
तुम्हारी अक्ल घुटने में आ गयी है का बच्चा। में कोई जमींदार की परिवार का हूं कि हिस्सा मिलेगा फलतू बोला।
टांग पटकते हुए तो ऐसे जातेआते थे जैसे हवेली के तुम ही वारिस हो,यह वही हवेली है भैया जिस हवेली वालों ने मेरे शरीर के पोर-पोर तोड़वा डाले थे। भैया जमींदार की हवेली से तुम्हें क्या मिला,यही न अरमानों का कत्ल और पेट पर पट्टी बांधे कोल्हू के बैल की तरह काम करते रहने की सजा। भैया जिसे अपना समझते रहे, उन्हें तुमने श्रम और पसीने से पोषकर कहां पहुंचा दिया,वे पूरी मजदूरी भी कभी नहीं दिये,तुम गरीबी के दलदल में फंसे रहे इसके लिए वे षणयन्त्र रचते रहे भर पेट रोटी तक न खा सको। उन्हें डर था और आज भी है कि कमेरी दुनिया के लोगों को भर पेट खाना मिलने लगेगा, इंकलाबी हो जायेंगे। खैर खून पीने वालों के बुरे दिन आने लगे हैं पर शोषितों को भी अपने हक के लिए छाती तानना पड़ेगा। भैया समझा करो,ये ठग वारिस बनाने वाले नहीं हैं बच्चा बोला।
मैं क्या वारिस होऊंगा,जो है उनको ही उनका पाप मुबारक हो फलतू बोला।
बच्चा बोला पाप मुबारक हो ।भैया तुम्हारी बात सुनकर कलजे को ठण्डक मिली।
फलतू -जैसी करनी वैसी भरनी ।
बच्चा -अरे वाह भैया क्या कहावत कह दिया जैसी करनी वैसी भरनी, संविधान के परचम लहराया रे भैया,शोषकों के दिन लद जायेंगे रे भैया, अब अच्छे दिन आयेगे रे भैया..... आयेंगे रे भैया......
नन्दलाल भारती
06/10/2022
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