Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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हाय रे खुदगर्ज अपनी जहां वालो

 

हाय रे खुदगर्ज अपनी जहां वालो
बोते मीठा जहर,
फरेबी झूठे हिमायती बनते,
खुद को खुदा समझते ,
दीन को दीन बनाये रखने की
तरकीब रचते रहते ,
मानते तो आदमी को अछूत ,
पर हाय रे अमानुषता
दीन को आंसू देने,
श्रम और हक़ ठगने में
तनिक परहेज नहीं करते
मानवता के पथिक इसे ,
दीन का दुर्भाग्य कहते।

 

 

 

.........डॉ नन्द लाल भारती

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