कविता : हे सरकार
नवयुवक युवतियों के लहू से
नित नहवाई जा रही धरती
जिस धरती को माँ कहते हो
कैसा स्वांग है चुनी हुई
सरकार तुम्हारा.?
बहाया जा रहा लहू
उसी माँ की छाती पर
हालात कितने बुरे हो गये हैं
लहू के रिश्ते बेनाम हो रहे हैं
नियति पर सवाल उठा रहे हैं
सीएए एनआरसी का विरोध
महंगाई, भ्रष्टाचार,बलात्कार
सरकारी नीयत में खोट
कैसे ना कहूँ..............
नोटबंदी जीएसटी,बेरोजगारी
सरकार के खिलाफ जन आक्रोश
छात्रों का दमन,शिक्षा की बर्बादी
गुलाम बनाने की पूरी तैयारी
जाति धर्म की घेरती महामारी
दलित आदिवासी का दमन
विद्रोह -विनाश
महिलाउत्पीड़न
कहा गया देशजनधन का विकास
अवाम की सरकार कैसे कह दूँ।
बैंक खाली कर्ज का बोझ भारी
उम्मीदों के पर नोंच रहे
विश्वास की नींव दहल गयी
शिक्षा मंदिरों में गोली,
नारी अस्मिता की होली
आम अवाम के विकास की सरकार
कैसे कह दूँ....
वक्त है अभी भूल सुधार कर लो
तुम सरकार हो, तुम्हे बनाया किसने
तनिक ठहर कर विचार कर लो
ना करे किसान कोई आत्महत्या
ना हो किसी बहन बेटी का बलात्कार
ना अब दलित आदिवासी दमन,
जातिवाद से मुक्ति का ऐलान
सामाजिक समानता,समान शिक्षा का अधिकार
दुनिया ना करे उपहास,
सब का साथ सब का विकास
वादा था सच्चा तो कर दो साकार
हे सरकार अब तो कर दो ललकार
झूम उठे आम अवाम,तेरी करे जयजयकार।
डॉ नन्दलाल भारती
20/12/2019
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