कविता: हिन्दी अपनी माई
हिन्दी अपनी भाषा -भारती,
हिन्दी अपनी आन, हिन्दी अपनी पहचान,
हिन्दी का क्या -क्या करूं गुणगान
हिन्दी जीवन की अपनी कविताओं,
हिन्दी तो अपनी माई।।
जग जान गया है,
अपनी जहां में जब,बच्चा पैदा होता है
हिन्दी में रोता है,
मां की खुशी के बोल, पिता का दुआ-सलाम
शुभ भाषा हिन्दी में होता है।।
हिन्दी से तो अपना, जन्म-जन्म का नाता है
हिन्दी से भाग्य संवर जाता है,
पहली बार आवाज जब,
कण्ठ से निकली थी प्यारे
माई का उच्चारण गले से हुआ था हमारे।।
जी-ट्वेन्टी ने बना दिया है, राजभाषा को
दुनिया का संगम,
हम तो करते हैं माई यानि हिन्दी का,
वन्दन -अभिनन्दन ।।
वसुधैव कुटुम्बकम का आगाज है हिन्दी
सद्भावना -सदाचार का उजास है हिन्दी
भारतीय जनतंत्र की आशा है हिन्दी
खेत-खलिहान, शहर-गांव के जीवन की
परिभाषा है हिन्दी ।।
सरल-सहज कर्ण प्रिय, अपनी हिन्दी
हर भाषा का करती है सम्मान
माई यानि हिन्दी,
अपनी दुनिया का स्वाभिमान
जी-ट्वेन्टी से बढ़ा है जग में मान ।।
हिन्दी दुनिया को खूब सुहायी
हिन्दी ने विकास की प्रीति निभाई
गूंज रही दुनिया में, अपनी पुरवाई
जी-ट्वेन्टी की सुखद अगुवाई
वन्दन -अभइनन्दन हिन्दी माई
हिन्दी तो अपनी माई...... हिन्दी तो अपनी माई।।
नन्दलाल भारती
दिनांक २६/०९/२०२३
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