लघुकथा: हिस्से की रोटी
रविभार्गव-अरे नयन सिंह सुनो।
हां बोलो रवि भाई,अभी और कोई काम तो बाकी नहीं रहा।
रवि -डिनर पार्टी खत्म हो चुकी है।
अभी तो हम लोगों का डिनर नहीं हुआ नयनसिंह बोला।
भूख लग रही है। सुबह से चाय भी नहीं पीया रात के बारह बजने वाले हैं।भूख-प्यास से जान निकल रही है वंशलाल बोला।
रविभार्गव-तुम लोगों के लिए न तो सहकारिता संगोष्ठी थी और न डिनर था।जैन साहब ने मना कर दिया है। अब तुम लोग जाओ। सुबह आ जाना।
नयनसिंह -क्या राजिन्द्र जैन साहब ने कहा है हम दोनों के लिए डिनर नहीं है ? हमारे हिस्से की रोटी छीन लोगे क्या ? भूखे की रोटी छीनना महापाप है।
रविभार्गव-एरिया मैनेजर,जैन ने कहा है यह डिनर बैंक के उच्च अधिकारियों के लिए था, टाइपिस्ट और चपरासी के लिए नहीं था।
वंशलाल -सुबह आठ बजे से एक पैर पर हम दोनों खड़े हैं।न चाय मिली न लंच मिला।एक मिनट के लिए इधर उधर भी नहीं होने दिये। हम लोगों को भी भूख-प्यास लगती है।हम लोग भी इंसान हैं।
रविभार्गव-नेतागिरी नहीं करो वंशलाल। जाओ जैन साहब से बात कर लो।
नयनसिंह-जैन साहब तो अभी अभी चले गए।
रविभार्गव-तुम लोग भी जाओ।
वंशलाल भागो नयनसिंह।
क्यों और कहां?
ग्वालियर स्टेशन की ओर शायद कोई ढाबा खुला मिल जाए और हमें रोटी मिल जाये।
वंशलाल और नयनसिंह भूखे प्यासे बेसुध स्टेशन की तरफ भागे पर वहां भी सब होटल-ढाबे बंद हो चुके थे क्योंकि रात के अब डेढ़ बजे चुके थे।
सुबह आठ बजे से रात के बारह बजे तक हम दोनों एक पांव पर ड्यूटी पर खड़े रहे और आखिर में ठगों ने हिस्से की रोटी छिन लिया। लगता है ये ठग छीनते रहेगे।आज की रात पानी पीकर गुजारा करना पड़ा ।
भगवान ठगों का आसरा छिन लेना,आओ चलें फर्ज बुला रहा नयनसिंह बोला।
ठग भले ही हिस्से की रोटी छीन ले पर हमें तो फर्ज पर फ़ना होना है,छोटे लोग जो ठहरे वंशलाल बोला ।
नन्दलाल भारती
२७/०८/२०२३
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