जान लो मान लो ये
बेचैनियाँ बोने वालो ,
बेपर्दा होगा जब
मुखड़ा तुम्हारा ,
गुस्ताखियां छीन लेगी
सकून सारा ,
तुम्हारे अपने तुम्हे ,
ख़ूनी कहा करेगे ,
जब आएगा नाम तुम्हारा
मुंह छिपाया करेगे ,
तुम कब्र में रहोगे या
द्वारिका ,हरिद्वार या
काशी के बहाव में
कहीं चैन से
सो ना पाओगे
दीन को
कतरा-कतरा आंसू दिए जो
हिसाब कि किताब में ,
नर पिशाच रह जाओगे।
…… डॉ नन्द लाल भारती
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