Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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जहर

 

खुले है पर,
हाथ बंधे लग रहे हैं ,
खुली जुबान पर,
ताले जड़े लग रहे हैं।
चाहतों के समन्दर ,
कंकड़ों से भर रहे हैं ,
खुली आँखों को,
अँधेरे डस रहे है।
लूट गयी तकदीर,
डर में जी रहे है,
कोरे सपने ,आंसू बरस रहे हैं।
फैले हाथ नयन शरमा रहे है ,
चमचमाती मतलब की खंजर ,
बेमौत मर रहे है।
समझता अच्छी तरह,
क्या कह रहे है,
बंधे हाथ,
खुले कान सुन रहे है।
बंदिशों से ,
घिरे वंचित ताक रहे है,
छिन गया सपना,
कल को देख रहे हैं।
भीड़ भरी दुनिया में,
अकेले रह गए है ,
अपनो की भीड़ में,
पराये हो गए हैं।
झराझर आंसुओ को,
कुछ तकदीर कह रहे है ,
आगे बढ़ने वाले ,
पत्थर पर लकीर खींच रहे है।
क्या कहे कुछ लोग ,
खुद की खुदाई पर विहस रहे है ,
कैद तकदीर कर,
जाम टकरा रहे हैं।
दीवाने धुन के ,
जहां आंसू से सींच रहे हैं
उभर जाए कायनात शोषितो की
उम्मीद में जहर पी रहे हैं।

 

 


डॉ नन्द लाल भारती

 

 

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