Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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जज़्बात

 

कष्ट मिलता है
अपनी जहाँ में
अक्सर जो निर्दोष होते हैं
अथवा
हाशिये के लोग
मिटना पड़ता है
अपनी जहां में निरापद को हो
जो बोना चाहता है
सदा के सदकर्म, समता,सदाचार
सच्चाई और अच्छाई
ये कैसा दुर्भाग्य है
काटे जाते हैं
नेककर्म करने वाले हाथ
होते है
दफन करने के जी तोड़ प्रयास
अंधेरे में फेंक दिए जाते है
हाशिये के कर्मशील लोग
घोंट दिया जाता है गला
आगे निकल जाते है
कर्महीन पहुंच वाले हाथ
दर्द में दब जाते है
कर्मशील और ईमानदार हाथ
जो कभी टिके ही नही फ़र्ज़ पर
वही हाथ कैद कर लेते हैं
हक हाशिये के हिस्से के
पीछे छूट जाता है
अधमरा सा कर्मयोगी
हाशिये के आदमी अपनी जहाँ में
निरापद कष्ट में रहकर भी
बोता रहता है
फ़र्ज़, ईमानदारी और अच्छाई की फसल
अपनी जहाँ में
यही जज्बात ज़िंदा रखता है
हाशिये के आदमी को
कायनात में।।।।।

 

 


डॉ नन्दलाल भारती

 

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