कविता जश.....प्रकाशनार्थ
Inbox | x |
| 10:47 AM (7 hours ago) |
|
कविता : जश्न
हमारी मत पर तुम रोना मत प्यारे
हमारी मौत तुम्हारे लिए
जश्न की बात होगी
हम समझ चुके हैं तुम्हारी समझ को
हमारी मौत के बाद तुम स्वछंद हो जाओगे
तुम्हें टोकने वाले ना होगें
वैसे भी तुम हमारी कहाँ सुनते थे
हमारी हर बात तुम्हें दकियानूसी लगती थी
मां तुम्हें अनपढ़ गंवार लगती थी
तुमने हमें बदनामी के हर खिताब दिये
कब्र के करीब ढकेलते रहे
साजिश मे भले ही तुम शामिल न थे
दोषी तो बहुत रहे
ठग सास-ससुर और उनकी कुलक्षणा बेटी को
खुश रखने के लिए
तिल तिल मारते रहे मदहोश तुम
हमारे दर्द का तनिक एहसास ना हुआ तुम्हें
मां की तपस्या पिता के त्याग का चीरहरण
तुम्हारी पत्नी ने तुम्हारे हाथों करवा दिया
तुम खुश होते रहे
अस्मिता की बोटी- बोटी करते रहे
ठग सास ससुर और उनकी
हाफमाइण्ड हाफब्लाइण्ड बेटी के लिए
हम पल-पल मरते रहे और तुम बेखबर थे
हमारी मौत के बाद खबर होगी तुम्हें
मजे की बात होगी कि हम ना होगें
हाँ हमारा विहसता हुआ फर्ज होगा
जिस तुम्हें भले ही असन्तोष था
लोगों के लिए गुमान की बात होगी
हां तुम अपने कटुबातों सौतेला, बेशर्म,
लोगों के बीच हमारी इज्ज़त का जनाजा भी
पर खुश हो सकते हो
हम जानते हैं पहले तुम ऐसे बेमुरव्वत
बेटा-बेटी ना
पांव जमते सात फेरे पूरे होते ऐसे हो गए
जिसका किसी को अंदाज ना
प्यारे बेटों बेटियों हमारी मौत पर
आसूं नहीं बहाना
जश्न जरूर मनाना,
हमारी मौत तो बहुत पहले हो चुकी थी
तुम लोग जब बागी होकर
हमारे विरोध मे कसीदे पढने लगे थे
हमारी दुआएं तुम्हारे साथ सदा रही
और रहेगी
तुम दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की करो
यही सपना है और रहेगा
खुश रहना तुम्हारे जीवन बगिया मे
सदा बसन्त रहे
हम बेशर्म -सौतेले बेवफा मां-बाप को भूल जाना
एक बात और हमारी मौत पर झूठे आसूं नहीं
जश्न मनाना .......
डां नन्द लाल भारती
13/03/2020
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY