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झाड़ू वाली अम्मा

 
झाड़ू वाली अम्मा

जून का महीना तप रहा था। पहली बारिश से धरती आग उगल रही थी। दोपहर के एक बज रहे होंगे।बस की खिड़कियों से आने वाली हवा चेहरा झुलसा देने वाली थी।  ग्वालियर से बस रात में निकली थी। मुकुंद का बहुत बूरा हाल हो गया था। उसका पूरा शरीर टूट और दर्द कर रहा था। बस की यात्रा हड्डियां झकझोर देने वाली थी। यात्रा हनुमान की पूंछ जैसी लग रही थी। इसी बीच कण्डकटर ने  दहाड़ मारा,इंडोटेल मैनर हाऊस आ गया। फटाफट उतर जाओ जिसको उतरना है।

मुकुन्द भी लोहे का बक्सा लेकर उतर गया। बस स्टाप से  दफ्तर पहुंचने के लिए कोई साधन नहीं मिल रहा। लू के थपेड़े सहता मुकुंद इंतजार कर रहा था। इतने में ठेले वाला आया। ठेले वाले शरीफ इंसान ने मुकुंद का सामान ठेले पर रख कर जैसे दौड़ लगा दिया और मुकुन्द ठेले वाले के पीछे हो लिया। दस मिनट में ठेला दफ्तर के सामने।

ठेला खड़ा होते ही नीम की छांव में खड़ी बूढ़ी महिला दौड़कर और बोली साहब ग्वालियर से आ रहे हैं।आप मुकुंद बाबू हैं।
जी बाई जी मुकुंद बोला।
बाई नहीं। मैं झाड़ू वाली अम्मा हूं। बड़े साहब भी अम्मा कहते हैं। आप भी आज से अम्मा बोलिएगा । हमारे यहां बाई अच्छा नहीं माना जाता,खैर यहां सब अच्छा मानते हैं, मैं नहीं। झाड़ू वाली अम्मा माथा ठोकते हुए बोली अरे मैं क्या उटंगा -पुरान लेकर बैठ गई।
ठेले वाले भैया साहब का सामान गेस्ट हाउस में रख दो। ठेले वाले ने सामान उतारा और अपनी मजदूरी के रुपए लेकर ठेले को आगे ठेल दिया।अम्मा ने पूरा फर्ज निभाया।

अम्माजी कोई दफ्तर में नहीं है क्या मुकुंद पूछा।
हां साहब सभी सीहोर शहर में कोई मंत्री आये हैं,पूरे दफ्तर की ड्यूटी वहीं लगी।  रहिस मियां भी दस बजे बोरा भर सामान लेकर गया है। खां साहब और सभी कल मिलेंगे। आपके आने तक मेरी ड्यूटी खां साहब ने लगाई थी। देर रात तक तो सुना है प्रोग्राम चलेगा।आप दफ्तर सम्हालो मैं चाय बनाती हू अम्मा बोली।
हां चाय बना लीजिए मुकुंद इतना ही बोला इतने में फोन घनघना उठा।

फोन उठाओ साहब बड़े साहब का होगा अम्मा बोली।
मुकुंद फोन का रिसीवर उठाया,कान पर लगाया और हेलो बोलता, दूसरी तरफ से आवाज आई मैं खां बोल रहा हूं।मुकुंद कम्पनी  के नये दफ्तर  में   तुम्हारा स्वागत है।तुम आफिस संभालो, कल मिलता हूं। फोन बंद हो गया।

अम्मा चाय रखते हुए बोली साहब खां साहब थे ना । बहुत अच्छे इंसान हैं। उनके घर जाओ तो लगता ही नहीं किसी गैरधर्मी के घर आये हैं लगता है अपने परिवार में आयें है। मैडम और उनके बच्चे बहुत खातिरदारी करते हैं।

अम्मा बड़े लोग भेदभाव नहीं करते सब को बराबर तवज्जो देते हैं मुकुंद बोला।
हां साहब सही कह रहे हो। भले ही मियां है पर आदमियत पसंद हैं खां साहब अम्मा बोलीl

सच बाबू। बड़े साहब के आगे अपनी क्या औकात मैं तो झाड़ू- पोंछा और बाथरूम की साफ सफाई का काम करती हूं।जाति से यादव हूं ।  खां साहब इज्जत के साथ  अम्मा ही बोलते हैं। रहीस के नहीं रहने पर मैं आ गई तो खां साहब बोलेंगे अम्मा चाय बनाओ और पीओ। मैं जब चाय बनाकर खां साहब को देती हूं तो साहब बहुत खुश होते हैं।तारीफ करते हैं मन गदगद हो जाता है अम्मा बोली।

अम्मा दिल से अच्छे लोग सच्चे इंसान होते हैं। अरे अम्मा तुम्हारी चाय कहा है ।चाय पीओ मुकुंद बोला।
बाद में पी लूंगी अम्मा बोली।
अम्मा चाय लेकर आओ मेरे सामने कुर्सी पर बैठ कर पीओ मुकुंद बोला।
कोई आ जाएगा तो क्या क्या कहेगा अम्मा बोली।
क्या कहेगा, कुछ नहीं कहेगा। किसी को क्यों आपत्ति होगी मुकुंद बोला।
नहीं साहब आप पी लो। मैं बाद में पी लूंगी अम्मा बोली।
अम्मा तुम नहीं पीओगी तो मैं भी नहीं पीऊंगा मुकुंद बोला।
ठीक है साहब कहते हुए अम्मा पेन्टरी से चाय का कप लेकर आयी और जमीन पर बैठने लगी।
अम्मा नीचे नहीं कुर्सी पर बैठ कर चाय पीओ मुकुंद बोला।
साहब इतना सम्मान मत दो अम्मा बोली।
अम्मा तुम बुजुर्ग हो, सभी तुमको अम्मा कहते हैं, मेरी भी तो अम्मा हो यानि मां हो मुकुंद बोला।
साहब मैं रो पड़ूंगी अम्मा बोली।
अम्मा सोचो में तुम्हारा बेटा हो तो कैसा बर्ताव करती मुकुंद बोला।
साहब इतना इज्जत दे रहे हो पहले दिन से अम्मा बोली।
साहब नहीं बेटा बोलो अम्मा।
बेटवा तुम कौन से परदेस के हो अम्मा बोली।
अम्मा मैं उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले का हूं।
मैं बरेली की हूं पर जीवन यही बीता, बाकी का जीवन यही कटेगा। आखिर मैं यही की माटी में विलीन हो जाऊंगी अम्मा बोली।
रहिस मियां भी वही का है अम्मा बोली।
होगा।कल आयेगा तो बातचीत होगी मुकुंद बोला।
बेटवा रहिस मियां बहुत मतलबी है अम्मा बोली।
अम्मा दुनिया मतलबी है मुकुंद बोला।
नेकी की छाती में खंजर उतारने वाला इंसान रहिस है बेटवा धीरे धीरे समझ जाओगे और एक दिन नफ़रत भी करने लगोगे । कलमूहां रहिस मियां से नफ़रत होती है। मैं भी इंसान हूं भले ही घर-घर झाड़ू पोंछा करती हूं बोली।
अम्मा कोई काम छोटा बड़ा नहीं होता है। असली मुद्दा आदमी की सोच का है मुकुंद बोला।

हां बाबू कलमुहे की सोच में खोट है। खां साहब से पहले वाले साहब नाक में नकेल डाल कर रखते थे। सूरज उगने से पहले साहब के घर पहुंच जाता था। पानी भरता था। पूरे घर के रोज के कपड़े धोता था। दफ्तर में हमारे सामने रोता था। खां साहब के आने के बाद नौकरी पक्की हो गई। खां साहब मुरव्वत बरत दिये तो अब  कहता है पठान साहब बोलो,ऐसे पठान होते हैं। कहते हैं ना जीआवल कुकुर कटहा, जब कुछ नहीं था तो  मैं रोटी, ओढ़न विस्तर तक का इंतजाम करती थी। वही रहिस मुझे भंगन कहता है।

अम्मा अच्छे काम का फल मिलता है मुकुंद बोला।
हां बेटवा मुझे तो मिला है। दोनों बेटों को झाड़ू पोंछा कर कर पढ़ाई लिखाई और आज झाड़ू पोंछा के सहारे दोनों बेटवा को सरकारी नौकरी लगवा दी,इतनी तरक्की झाड़ू पोंछा वाली के लिए कम तो नहीं है बेटवा अम्मा बोली।

आज के जमाने मे सरकारी नौकरी किसको मिलती है। सरकारी नौकरी के दाम भी भारी लगते हैं,दाम अदा करने की औकात होती तो मैं साहब होता, बहुत धक्के खा कर यहां पहुंचा हूं मुकुंद बोलाl

बेटवा मन उदास ना करो, तुम्हारी नौकरी सरकारी से कम नहीं है। तुम्हारे ख्वाब जरुर पूरे होंगे कहते हुए अम्मा उठी और दफ्तर की चाभी देते हुए बोली बेटवा दफ्तर संभालो।शाम होने वाली है मै अपने काम पर चलती हूं मालकिन लोग इंतजार कर रही होंगी।अब सुबह मिलूंगी कहते हुए बंगलों की तरफ तेजी से जाने लगी।

सुबह दस बजे आफिस खुलता था। झाड़ू वाली अम्मा साढ़े आठ  बजे आ गई। ईमानदारी और वफादारी की प्रतिमूर्ति थी, दफ्तर की चाभी अम्मा के पास होती थी। अपने समय पर अम्मा आ गई ‌। पीने का पानी भरी,दूध गर्म की। इन कामों को निपटाने के बाद अम्मा झाड़ू लगायी फिर पोंछा लगायी। वाशरूम की सफाई के बाद चाय के बर्तन कप प्लेट साफ करने में जुट गई। ये सब काम करने में दस बज गए। मुकुंद साढ़े नौ बजे आफिस में हाजिर हो गया था।

अम्मा बर्तन साफ कर जैसे ही पेन्टरी से बाहर निकली रईस आ गया आते ही बोला क्यों भंगन काम हो गया।
मुकुंद दफ्तर में था, अम्मा कोई प्रतिक्रिया नहीं दी बस इतना बोली तुम्हारे एक और साहब आ गये।

चल हट कौन नया साहब आ गया रईस अम्मा को झिझकारते हुए बोला।
ग्वालियर से  ट्रान्सफर होकर आये हैं। खां साहब ने फोन पर कोई काम बताया वही टाइप मशीन पर कर रहे हैं। रईस मियां तुम चाय बनाओ अपने नये साहब को पिलाओ और खुद पीओ। मैं अपने काम पर चलती हुई। 
जा चली भंगन रईस डांटते हुए बोला।

देखो रईस मियां मैं जाति से यादव हूं और बगीचे का काम करती  हूं और झाड़ू पोंछा का काम करती हूं तो मैं भंगी हो गई और तू तो धोबी हो गया अम्मा बोली।
मैं पठान हूं। धोबी कैसे हो सकता हूं रईस बोला।
वो दिन भूल गया,पुराने वाले साहब के घर औरत पुरुष सभी के कपड़े धोता था।दिन फिर गये, दफ्तर में स्थायी चपरासी हो गया तो पठान हो।याद करो इसी भंगन के आगे रोता था,अब तुम मुझे रूला रहे हैं। तुमने पठान को देखा है  पठान की जूती जैसा भी नहीं है।
चुप भंगन रईस बोला।
क्यों तुम्हें   दर्द हो रहा है, मुझे भी दर्द होता है। मैं भी इंसान हूं,जाति भगवान ने नहीं बनाया है। जाति तो परजीवियों ने बनाया है ताकि लोगों को ऊंचा नीचा बताकर खून पीते। परजीवियों ने जाति-पाति बनाकर अपना जन्म जन्मांतर आरक्षित कर लिया है।

दफ्तर के सामने शान से खड़े नीम के पेड़ की छांव के नीचे अम्मा बैठती थी। वही अपने जीवन की ज्ञान गंगा बहाती थी। अम्मा निरक्षर थी सांसारिक ज्ञान से अमीर थी। अम्मा एक हाथ से झाड़ू और दूसरे हाथ से बड़ी लोहे की खुरपी दिखाते हुए बोली घमण्डी  मियां  रईस काम बड़ा छोटा नहीं होता, आदमी की सोच छोटी- बड़ी होती है।
अब तुमको देर नहीं हो रही है जाती क्यों नहीं रईस बोला।

बर्रो के खोते में पत्थर मारने से पहले क्यों नहीं सोचा मियां।धन आ गया है तो घमंड ना कर कुछ साल पहले भूख से बिलबिला रहे थे, साहब और उनके बच्चों के कपड़े धो रहे थे तब तो तुम्हारी अम्मा थी, पहले भी यही काम करती थी। अब तुम सरकारी चपरासी हो गये तो मैं तुम्हारी नज़र में भंगन हो गई कहते हुए अम्मा पल्लू से आंखें ढंक ली। 

जा नहीं तो बंगले वाले काम से निकाल देंगे रईस बोला।
बंगले वाले इंसान हैं, तुम्हारे जैसे हैवान नहीं सब झाड़ू वाली अम्मा की इज्जत करते हैं अम्मा बोली।
जानता हूं तुम्हारी कितनी इज्जत होती है। इतने में शाखा प्रबंधक खां साहब आ गये। अम्मा बोली सलाम साहब।
वालेकुम सलाम अम्मा खां साहब बोलते हुए दफ्तर में प्रवेश कर गए झाड़ू वाली अम्मा खुरपी और झाड़ू लेकर काम पर चल पड़ी।

रईस दौड़कर खां साहब से पहले दफ्तर मे जा चुका था। इन सबसे  बेखबर मुकुंद खां साहब के दूरभाष पर बताये काम को  में जुटा हुआ था।
खां साहब आफिस में बैठे नहीं पहले कालबेल दबा दिये, चपरासी रईस हाजिर हुआ। खां साहब बोले मुकुंद को बुलाओ।
अभी तो कोई आया नहीं चपरासी बोला।
तुमने देखा नहीं आया है फिर से देखो और बुलाकर लाओ।वह अपने कमरे में रिपोर्ट बना रहा होगा। रईस का थोबड़ा उतर गया। वह मुकुंद को देखकर बोला तुम मुकुंद हो।

गुडमार्निंग आप कौन हैं मुकुंद पूछा।
मैं रईस खां हूं जाओ तुमको खां साहब बुला रहे हैं।
मुकुंद साहब को बाअदब नमस्कार किया। साहब बोले नमस्कार मुकुंद बैठो। फिर खां साहब ने कालबेल दबा दिया पुनः रईस हाजिर हुआ। विशेक और मन्दमनि को बुला दो। ड्राइवर दिपिन भी होगा उसे भी बुला दो सब के लिए चाय बनाओ।

हामी भरते हुए रईस चला गया। कार्यालय के सभी कर्मचारी खां साहब की आफिस में बैठ गये। रईस चाय लेकर आया। खां साहब बोले  पहले पानी पिलाओ रईस मियां। रईस पानी के सिर्फ गिनकर तीन गिलास लाया। पहला गिलास खां साहब आफिस हेड, दूसरी मन्दमनि,तीसरा गिलास विशेक को दिया।
मुकुंद को भी तो पानी दो खां साहब बोले।
रईस अनसुना कर दिया।

आधा घंटे की मीटिंग के बाद सभी अपने-अपने काम में लग गए। आफिस हेड खां साहब दौरे पर चले गए।
खां साहब के जाने के बाद रईस का धार्मिक इगो उबल पड़ा।वह मुकुंद के कक्ष में गया। रईस मुकुंद से बेअदबी से पूछा कौन से जिले के हो मुकुंद ?
आजमगढ़  मुकुंद बोला।

कौन सी जाति के हो रईस दूसरा सवाल दागा?
अम्बेडकरवादी हूं मुकुंद बोला।

चमार कहने में शर्म आती है। या खुदा अब चमार को चाय पानी पिलाना पड़ेगा कहते हुए रईस मुकुंद के कक्ष से बाहर निकल गया। रईस की जातिवादी टिप्पणी से मुकुंद के शरीर में जैसे आग लग गई। इस अपमान के जहर को बड़ी मुश्किल से मुकुंद पीया।  
रईस मुकुंद को ना पानी दिया ना चाय, मुकुंद पेन्टरी में जाकर पानी तो पी लिया पर रईस को आपत्ति थी कि मुकुंद पेन्टरी के बर्तन का उपयोग नहीं करें।
रईस के इस दुर्व्यवहार के बारे में मुकुंद मंदमनि को बताया। मंदमनि चपरासी रईस को समझाने की कोशिश किया।जातिवादी रईस जिद पर अड़ा था।
 तुम ये मत भूलो कि रईस तुम चपरासी हो मुकुंद बड़ा बाबू मंदमनि बोला।

मैं मुकुंद से पहले से कम्पनी में हूं। मैं सीनियर हूं, मैं मुकुंद को चाय पानी नहीं पिलाऊंगा रईस बोला।
नौकरी करना है तो सब करना पड़ेगा। सलाम भी करना पड़ेगा । खां साहब तुमसे बाद में  ज्वाइन किये  हैं तो क्या  खां साहब से बड़ा अफसर बन गया।याद रखो रईस तुम  चपरासी हो मंदमनि बोला।
मैं नहीं करुंगी रईस बोला।

रईस -दफ्तर और फील्ड अफसरों के बीच मुकुंद के खिलाफ वातावरण बनाने में जुट गया,विशेक सहित कुछ दूसरे जातिवादियो ने रईस का समर्थन किया । विशेक ने तो मुकुंद की कुर्सी फेंक दिया मेज उलट दिया। रईस के झांसे में उच्च वर्णिक विशेक आ गये थे, मुकुंद की उपस्थिति न विशेक को भा रही थी न रईस को । अच्छी बात थी आफिस हेड खां मुकुंद के व्यवहार और काम से बहुत खुश थे। हेड आफिस तक मुकुंद के काम की प्रशंसा करते थे।

रईस था कि दिन पर दिन उग्र होता जा रहा था।
 मुकुंद ने अपने  साथ हो रहे जातीय अत्याचार के  बारे में आफिस हेड खां साहब को बताया। खां ने तुरंत मीटिंग बुलाया। इस मीटिंग में रईस को उसकी औकात का पता चल गया। रईस चाय पानी तो देना शुरू किया पर उसके व्यवहार में कोई खास बदलाव नहीं आ रहा था। 

उधर झाड़ू वाली अम्मा रईस के दुर्व्यवहार से बहुत दुखी थी। अक्सर खाली समय में दफ्तर के सामने शान से खड़े नीम की छांव में अम्मा बैठा करती थी।
एक दिन अम्मा उदास सी नीम की छांव में बैठी हुई थी। लंच का समय था। मुकुंद अम्मा के पास गया और पूछा अम्मा क्यों उदास हो ?
आज बुढऊ से कहा सुनी हो गई थी। इसलिए मन बेचैन है अम्मा बोली।

अम्मा मन को ठौरिक रखो, दादा की बातों का बुरा मत माना करो।बुढौती में तो वहीं सहारा है और तुम उनकी सहारा हो और दादा तुम्हारे। अम्मा तुम तो खुद ही इतनी समझदार है, मुझे समझाती है। अम्मा आपस में तकरार नहीं करना चाहिए मुकुंद बोलाl

बुढऊ सठिया गए हैं, उनकी नाक पर गुस्सा चढ़ा रहता है।वे कुछ समझते ही नहीं अम्मा बोली।
इतने में रईस आ गया और बोला अरे भंगन काम पर नहीं गई रईस बोला।

तुम्हारे दफ्तर का काम तो कर दी हूं। दूसरों का करूं या न करूं तुमको  क्या फर्क पड़ने वाला है।
लोग तुमको काम देना बंद कर देंगे रईस बोला।
मुझे काम की कमी कभी नहीं होगी। तुम अपने बारे में सोचो अगर तुम्हारा व्यवहार लोगों के साथ उग्रवादी रहा और नौकरी से निकाल दिये गये तो तुम्हें घरों में कपड़े धोने का काम भी नहीं मिलेगा। प्यार बांटो प्यार मिलेगा नफ़रत बांटोगे तो नफ़रत ही मिलेगी। धर्म और जाति आदमियत से कभी बड़ी नहीं हो सकती  अम्मा बोली।

ये सब छोड़ों झाड़ू वाली अम्मा मुझे बताओ तुम्हारे तैंतीस करोड़ देवी-देवता में सबसे बड़ा कौन है रईस पूछा।
सबसे बड़ा तो भगवान है। वही सर्वस्व है अम्मा बोली।
खैर नहीं बताना चाहती हो तो मत बताओ। ये तो बता सकती हो तुम्हारे धर्म में सबसे छोटी जाति कौन सी होती है रईस पूछा।
भगवान ने तो आदमी बनाया है,सब उसी परमात्मा के अंश है। भला छोटा बड़ा कैसे कोई हो सकता है अम्मा बोली।
झूठ क्यों बोल रही हो रईस बोला।
कैसा झूठ यही सच है, आदमी बस आदमी होता है और सब बराबर होते हैं अम्मा बोली।
झूठ  भंगन झूठ,तुम्हारे धर्म में चमार सबसे छोटी जाति होती है कहते हुए वह दफ्तर के अन्दर चला गया।
अम्मा बोली बाप रे इतनी नफरत। यही नफ़रत तुम्हें मटियामेट कर देगी।

रईस रह रह कर अम्मा का अपमान कर देता। दफ्तर के अन्दर तो मुकुंद के खिलाफ जातीय जंग छेड़ ही रखा था। मुकुंद प्रगतिशील  था। वह भविष्य के सपनों में मशगूल रहता। अम्मा मुकुंद की शुभचिंतक बन गई थी।
अम्मा एक दिन बिलखते हुए बोली बेटवा तुम एक दिन साहब बनोगे और रईस दरवान। दरवान आते जाते सलाम भी करेगा।
रईस आदमियत विरोधी गतिविधियों में शामिल था। मुकुंद भविष्य के प्रति सजग। वह विभागीय प्रतियोगी के साथ अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने में जुट गया और रईस की खिलाफत में लगा हुआ थी। मुकुंद निरन्तर प्रयासरत रहा । आखिरकार मुकुंद का सपना साकार हुआ। 
कहते हैं ना घुरे के दिन भी बदलते हैं। मुकुंद विभाग में मैनेजर नियुक्त हो गया।
उधर रईस का मुकुन्द के प्रति रवैए में कोई खास फर्क तो नहीं पड़ा।  रईस चपरासी से दरवान बन गया। मुख्यद्वार पर उसकी ड्यूटी होती। जहां से सभी विभागीय आफिसर कर्मचारी प्रवेश करते थे।
मुकुंद का आना जाना मुख्यद्वार से होता जब मुकुंद की कार मुख्यद्वार पर पहुंचती रईस शर्म से लाल हो जाता और बगले झांकने लगता।
 दरवान रईस को मुकुंद मुख्यद्वार पर जब जब सावधान मुद्रा में खड़ा देखता तब तब झाड़ू वाली अम्मा की याद जीवित हो जाती। मुकुंद कह उठता एक थी  झाड़ू वाली अम्मा।

नन्दलाल भारती
13/06/2023



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