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झांकते आंसू

 

कहानी: झांकते आंसू
नन्दलाल भारती

हीरालाल और मोतीलाल दोनों सगे भाई थे। पिता बहुत गरीब थे। कभी खाना आधा पेट कभी फांका कर जीवन कट रहा था। माता-पिता जमींदारों के खेतों में मेहनत मजदूरी कर पांच बच्चे और खुद को मिला कर सात लोगों का परिवार का पालन-पोषण कर रहे थे।
हीरालाल पढ़-लिख कर शहर की ओर निकल पड़ा था।
मोतीलाल पढ़ाई-लिखाई में पिछड़ता चला गया जबकि हीरालाल की बालविवाहिता पत्नी देवकी ने अपने गहने तक गिरवी रख कर पढ़ाई का इंतजाम किया पर आगे नहीं बढ़ सका,सब ब्यर्थ चला गया। देवकी के गहने बिलायती सुअर जैसा साहूकार ढ़कार गया।
हीरालाल के साथ डिग्री कॉलेज में पढ़ रहा मेवालाल, हीरालाल का जिगरी दोस्त बन गया था। मेवालाल अपने सचे दोस्त हीरालाल के छोटे भाई मोतीलाल से सफेद झूठ बोल कर अपने ननिहाल खिछवन जिला जौनपुर के अपने मामा की छोटी बेटी लूटवन्ती का ब्याह मोतीलाल से छल से करवा दिया। मेवालाल ननिहाल का परिवार झगड़ालू और बदमाश किस्म का था, जबकि हीरालाल का परिवार भले ही गरीब था इज्जतदार और शरीफ था । शादी के बाद तो पूरी बारात को भूखे भगा दिया था। दूल्हन के दो बड़े भाई थे,एक अध्यापक था दूसरा भाई और उसका बाप बम्बई में नौकरी करते थे, इसके बाद भी यह परिवार बदमाश , लड़ाकू और बहुत घमंडी था। कौवे जैसा चालाक दोस्त मेवालाल खुद शादी में नहीं गया था।

हीरालाल के पिता- क्षेत्रपाल, माता- लाजवंती दोनों ताऊजी भग्गल और भीखम जी हीरालाल की नादानी पर बहुत डांट फटकार लगाये थे। खैर किसको बोलते ब्याह तो हीरालाल ने जिगरी दोस्त के मामा की बेटी से करवाया था। दूल्हन के भाईयों ने बहुत बुरी तरह बेइज्जत कर भगाया था। अगुवा कौवे जैसा शादी में गया ही नहीं था। बेचारा हीरालाल भींगी बिल्ली बना चुपचाप सब की डांट फटकार सुनता रहा।
हीरालाल के पिता क्षेत्रपाल, भले ही बहुत गरीब थे इज्जतदार थे,समाज में उनका मान-सम्मान था। बदमाश परिवार ने डकैती का इल्ज़ाम भी लगाया, दूल्हन की सगी बुआ जिसकी ससुराल हीरालाल के गांव से महज पांच किलोमीटर दूर अकोल्ही गांव में हुई थी जबकि वह हीरालाल के स्वभाव और चरित्र से प्रभावित थी, उनका बेटा मेवालाल कहने को हीरालाल का पक्का दोस्त था पर दोस्ती के नाम खंजर छाती में उतार दिया था। उसी बुआजी ने बारातियों को चोर और लोटा बर्तन चोर के नाम पर हीरालाल को अपने घर ही कहकर बेइज्जत कर दिया।

हीरालाल के पिता क्षेत्रपाल लड़ाकू बदमाश परिवार की बेटी को अपने शरीफ,इज्जतदार परिवार की बेटी लूटवन्ती को अपनी कुल की बहू नहीं मानने की ज़िद पर अड़े थे। लूटवन्ती के बाप हीरालाल के ससुर दरोगा जी और उनके परिवार के आगे अपनी पगड़ी पटक दिए थे। इस बात की गंभीरता को देखते हुए दरोगा जी जब भी दिल्ली से छुट्टी में आते मोतीलाल का गौना लाने का अनुरोध क्षेत्रपाल से करते। लूटवन्ती उर्फ सुभौता का गौना ले जाने को कहते। गिड़गिड़ाते हुए कहते दरोगा जी और उनके परिवार वालों को यह कहते धान पक गया है,समधी क्षेत्रपाल अपनी विवाहिता बहू मेरी बेटी लूटवन्ती का गौना कराकर विदाई करवा लें जाये।समधी दरोगा जी के बार-बार के अनुरोध को ठुकरा नहीं पाये। दूल्हा मोतीलाल सहित पांच लोगों को ले जाकर विदा करा लाये। गौना के दिन भी उसके घमण्डी अध्यापक भाई बदमाशी से नहीं चुका। लूटवन्ती को एक झपिंया यानि बांस की टोकरी जिसमें एक किलो बतासा देकर विदा कर दिया। क्षेत्रपाल एक जीप में विदा कर गौना ला दिये।

लूटवन्ती को गौना के बाद कभी उसके मायके वाले विदा कराने नहीं आये, लूटवन्ती का बूढ़ा बाप कभी कभी मिलने आ जाता था। मोतीलाल बीए पास तो था पर कभी परदेस नौकरी धंधा करने नहीं गया।बेरोजगार मोतीलाल और उसके बाल-बच्चों का बोझ हीरालाल के उपर आ गया । पांच सात साल के बीच मोतीलाल दो बच्चे का बाप बन गया पर लूटवन्ती का सुदेवश नहीं करवाने उसके मायके वाले करवाने नहीं आए। लूटवन्ती का सुदेवश यानी बच्चे पैदा होने पर मायके ले जाकर विदा करवाने वाली रीति निभाने की परम्परा का पालन, दरोगा जी के घर से हुआ जिसमें लूटवन्ती को रीति रिवाज के अनुसार सगी बेटी की तरह विदाई किये थे। हीरालाल -श्रीमती देवकी के बड़ी बेटी -सुषमा,बेटे-सुयश,जयश थे।
मोतीलाल -श्रीमती लूटवन्ती का बेटा शशांक बेटी पुष्पांश थी। मोतीलाल -श्रीमती लूटवन्ती का बेटा शशांक नौकरी भी प्रोवेशनरी अफसर के पद पर ज्वाइन किया था।बेटी -सुषमा,बेटा-सुयश का ब्याह हो चुका था।
सुषमा का ब्याह के बाद सुयश का ब्याह भी हुआ पर सुयश के ससुराल वाले ठग निकले, सुयश की पत्नी भी ठग मां-बाप की लूट में भरपूर शामिल हो गयी थी ।ठग की बेटी ने तिरिया चरित्र के नंगे प्रदर्शन से ठगों और पुलिस से टार्चर करवा कर परिवार से सुयश को अलग-थलग कर ली,और ठग परिवार सुयश को कामधेनु बना कर दोनों हाथों से दूहने लगे थे। सुयश घर परिवार से बहुत दूर जा चुका था । हीरालाल के पिता की मौत हो गई पर सुयश पुलिस से मोहलत ले मिल लिया था।इस बीच देवकी का जान बचाने के लिए अस्पताल में की भर्ती करवाना पड़ा। अभिलाषा पति सुयश को पुलिस के सहयोग से कभी मिलने जाने नहीं देती थी दी।
पुलिस ने सुयश से घुस ले कर शशांक के ब्याह में रात भर के लिये आने दिया था। पत्नी पीड़ित सुयश शादी होने के बाद बंगलौर वापस चला गया, क्योंकि पुलिस, ब्लैक मेलर महाठगिनी पत्नी अभिलाषा और अपने बहुरुपिए, जादूगर सास-ससुर के खौफ से डर कर जीवन बिता रहा था। एक बार तो बड़ी बहन सुषमा के घर महाठगिनी को बताकर बंगलौर सीटी में ही जो दस किलोमीटर दूर था चला गया था महाठगिनी ने पुलिस में कम्पलेन कर दी कि सुयश उसे छोड़कर भाग गया, पुलिस वहां पहुंच गयी,इस केस में पुलिस और महाठगिनी ने बहुत रुपए ऐंठ लिए थे,तब से तो वह राखी पर भी कभी नहीं गया न तो फोन किया, ऐसे ही चल रहा था कनपुरिया ठग- ठगिनियों का खेल ।
इधर हीरालाल और देवकी बेटा के वियोग में तड़प तड़प कर मरने को मजबूर थे और पूरा आतंकित था
सुयश के ब्याह में शशांक ने बीस हजार रुपए हीरालाल को नगद और तीस हजार और किसी काम में लगा दिया था। शशांक की शादी फीतू से हुई इस लड़की को मोतीलाल और उसकी पत्नी लूटवन्ती ने बचपन से देख रखा था,इसकी भनक भी हीरालाल और देवकी को न थी। सबको निश्चित कर लिया तब बताया था, इसके बाद भी मोतीलाल ने बुरा नहीं माना। शशांक की शादी में बढ़ चढ़ कर पैसा लूटाया, शादी का भार अपने ऊपर ले लिया। इसके बाद भी अवसरवादी शशांक देवकी से बोला था कि सुयश भैय्या ने मेरी शादी में एक रुपए भी नहीं दिया मैंने पच्चास हजार दिये। इतना ही नहीं गांव रिश्तेदारों से शिकायत किया मैंने तीन कमरे बनाए हैं इसमें सब बखरा मांगेगे, जबकि हीरालाल के सहयोग के बिना कुछ भी सम्भव नहीं था।चार साल की उम्र से पच्चीस बरस तक हीरालाल -देवकी पिता -मांता को शशांक ने ताना मारकर उनकी किडनी झकझोर कर जैसे मुंह में लाकर रख दिया था।


हीरालाल के दो भाईयों के छोटे से परिवार की ज्यादा पुरानी समस्या नहीं थी, जैसे ही शशांक नौकरी में अफसर ज्वाइन किया उसकी मां हीरालाल के त्याग को बिसार दी, धीरे - धीरे करके लूटवन्ती का व्यवहार बदलने लगा था, जिसके प्रभाव खुलेआम दिखाई देने लगा था। हीरालाल के मौत के मुंह में समा रहे थे, हीरालाल सपरिवार गांव में था हीरालाल की बहनें जो मोतीलाल की भी सगी बहनें थीं, लूटवन्ती की ननदें शंशाक और पुष्पांशी की बुआ आयीं हुई थी। खाना तनिक ज्यादा बनाना पड़ रहा जबकि पुष्पांशी के साथ उसकी बड़ी, बड़ी मम्मी सब हाथ बंटाते थे।पुष्पांजली को अकेले खाना बनाना भी नहीं पड़ रहा था। पिता मृत्यु की गोंद में धीरे-धीरे समा रहे थे। पुष्पांशी ने हंगामा खड़ा कर दिया। वह रो- रोकर अपनी नई -नई प्रोबेशनरी आफिसर बनी मां लूटवन्ती यानि अपनी सगी मां से दहाड़ मार-मार कर शिकायत कर रही थी कि सब की मैं मैं नौकर हूं कि तीनों टाइम थाप कर दूं।

पुष्पांजली की बात सुनने वाले उसकी अकृतज्ञता से दंग थे । हीरालाल और देवकी ने तो इन भाई बहनों को अपने बच्चों जैसा माना पढ़ाया-लिखाया था, इन्हीं के त्याग से आफिसर बना था। उसी के परिवार की लाडली बिटिया पुष्पांशी के ऐसे कटुशब्द कलेजा हिलाने के लिए काफी थे। उन्हीं लोगों की नेकी को वे लोग कलंकित रहे हैं।अब तो शशांक दो ढाई लाख रुपए तनख्वाह के साथ कमीशन सहित कमाने लगा था शायद यही घमण्ड सिर पर था जबकि उसके माता-पिता ने सिर्फ पैदा कर लाजवंती और हीरालाल को सौंप दिए थे बस यही उनका अपने बच्चों के उपर एहसान था।
पुष्पांजली की शादी में हीरालाल और देवकी मां की तरह रोल निभाये थे, बेटी पुष्पांशी के ब्याह में भारी रकम खर्च करने के बाद भी देवकी बेइज्जत कर दी। शशांक की कमाई का इतना बड़ा घमंड लूटवन्ती पर हावी था। मोतीलाल भी पलटी मार चुका था। सही ढंग से शादी की जानकारी भी नहीं दिया था इतना बड़ा अपमान ढोते हुए भी हीरालाल ने भारी खर्च किया।
भाई बहन, शशांक और पुष्पांजली पर उसकी मां लूटवन्ती का चरित्र चढ़ कर बोल रहा था जो शशांक की नौकरी लगते ही धीरे-धीरे चढ़ने लगा था,पुष्पांशी के ब्याह तक तो यह घमण्ड सिर पर चढ़कर ताण्डव करने लगा था। लूटवन्ती की लूट तो पहले से जारी थी हीरालाल की कमाई जो घर देता, कपड़े लत्ते जो कुछ देता उसमें से और खेती में उपजाअन्न-धन छिपाकर मायके और बहनों को देना जारी था,यह सब जानकारी तो हीरालाल को पहले से थी,अब तो हीरालाल और देवकी की कृपा से पला-पढा शशांक लाखों में खेल रहा था, मायके प्रताड़ित लूटवन्ती दोनों हाथों से मायके और बहनों को लूटाने में पहले भी खुले थे ,शशांक के नौकरी में आते ही पूरी तरह न्यौछावर करने को फ्री थी।
पुष्पांशी के ब्याह में उसके ननिहाल पिछवन से बीस लोग महिला और पुरुष मिलाकर आये थे जिसमें अधिकतर महिलाएं और कुछ छोटे बच्चे भी थे, शादी में ननिहाल पिछवन से बतौर सहयोग सिर्फ पांच सौ एक रुपए मिले थे। लूटवन्ती ने पूरे घर का मालिकाना हक और चाभियां अपनी बहन और भाभी को दे दे दी थी। जेठानी देवकी और ननदों की बहुत दूर फेंक रखी अपने ही घर में जबानी देवकी और सगी ननदें को परायी बना कर रख दी थी।
लूटवन्ती ने अपने मायके वालों और मायके के दूर-दूर के रिश्तेदारों को साड़ी-कपड़े, ब्याह में बनी ताजी-ताजी मिठाईयां देकर विदा की थी । ननदों और दूसरे रिश्तेदारों को बतासे और दो चार लड्डू देकर विदा कर छुटकारा पा ली थी। ननदें तो गीली पलकों के साथ मजदूरों जैसा काम बिना मजदूरी के कर चली गई थी। मायके वालों के लिए पूरा घर खुला हुआ था उनके आराम की पूरी खुद अपने हाथ में ले रखी थी, दूसरे मेहमानों को उठने-बैठने की व्यवस्था तो दूर उनको पानी तक नहीं पूछ रही थी । लूटवन्ती के लोमड़ी प्रबंधन को देखकर हीरालाल और देवकी को यह भेदभाव और उपेक्षा लहू के आंसू बहाने को मजबूर कर रहे रहे थे। बहनों को उदास चेहरे उन्हें डरा रहे थे, जबकि देवकी ने अपने स्तर पर बहनों और भांजियों को अपने स्तर पर दान-दक्षिणा तो दी थी,इस बार भी चूक नहीं की थी।
इतना ही नहीं लूटवन्ती का घमंड बेटा शशांक की कमाई सिर चढ़ गया था मेहमानों के सामने देवकी के उपर पर रौब जमा रही थी,खुले आम डांट कर बेइज्जत भी कर दी,जबकि मोतीलाल और लूटवन्ती के सकुशल जीने और उनके बच्चों की सफलता के पीछे हीरालाल और देवकी का ही त्याग था। लूटवन्ती और मोतीलाल ने शशांक को पैदा कर लालन-पालन पढ़ाई-लिखाई के लिए पूरी अपनी जिम्मेदारी से मुक्त
हो गया था। मोतीलाल करता भी क्या ? हीरालाल और लूटवन्ती ने पैतृक गांव की सभी तरह की जिम्मेदारी ने सहर्ष स्वीकार लिया। हीरालाल -देवकी ने मोतीलाल और उसके परिवार को खुद के बच्चों की सुख-सुविधा का इंतजाम करता रहा। शंशाक की तो आंख खोलते ही अपने पास शहर ले गये थे। उसे प्रबंधन जैसी पढ़ाई भी करवाये । शशांक पढ़ाई खत्म करते ही नौकरी ज्वाइन कर लिया। देवकी -हीरालाल खुश तो बहुत थे। उनके पाले-पोसे बच्चे तरक्की कर रहे थे । हीरालाल यह सोच कर और खुश था कि मांटी,अग्नि, हवा और पानी में समाहित उसके माता-पिता की ख्वाहिशों को पूरा करने की जिम्मेदारी पूरी कर चुका था। परन्तु चिन्तित था क्योंकि वक्त बदलते ही लूटवन्ती पूरी बदल गई इसका प्रभाव मोतीलाल पर भी पड़ चुका था।लोग कहते हाय रे लूटवन्ती का लोमड़ी प्रबंधन।

यह सारा षणयन्त्र फीतू ने आते ही रचना शुरू कर दिया था,जिसकी फसल कटने लगी थी जिसके दूरगामी परिणाम भयावह लग रहे थे। इसका प्रभाव तो पूष्पांशी के ब्याह के बाद तो लूटवन्ती ने ला दिया इससे हीरालाल और देवकी के जैसे सिर कुचल गये थे।फीतू ने ब्याह कर आने के बाद रणभेदी बजा दी थी।फीतू ने तो आते ही देवकी पर अपयश लगाकर खुद बेइज्जत की और अपने सास-ससुर मोतीलाल और लूटवन्ती से करवाई।पुष्पांशी ने भी नहीं बख्शा। वह खूनी प्रहार करते हुए बोली थी मेरे रहते मेरी शिक्षित भौजाई को बड़ी मम्मी इतना दुःख दे रही है,जबकि देवकी के लिए फीतू, पुष्पांशी सुषमा बिटिया जैसी थी । उन लोगों ने एकदम से इतने बड़ी तपस्या और त्याग के बाद भी हीरालाल और देवकी जो उनके पूरे परिवार के पालक और संरक्षक थे भूला दिये। शशांक भी चार कदम आगे निकल गया था।
सच कहते हैं साहब, हालचाल भी लोग मतलब बस ही पूछते हैं। यहां तो जीवन में वह भी मिल चुका था जो शायद इस जन्म में नहीं मिल पाता। मोतीलाल और लूटवन्ती के स्वस्थ जीवन और उनके परिवार का शैक्षणिक और आर्थिक सम्वृध्दि हीरालाल और देवकी के प्रसव पीड़ा जैसा त्याग का ही तो था। मतलबी लोग भले ही बिसार दे पर इस दम्पति का त्याग गांव की सोंधी माटी में समा चुका था। इनकी अपनी जहां स्तब्ध और बिल्कुल खामोश थी,
हीरालाल और देवकी के पलकों से झांकते आंसू इनके सुलगते त्याग की दास्तान मौन ही सब कुछ बयां कर रहे थे।
रिटायर फौजी की किराये की कार गेट पर खड़ी हो चुकी थी। हीरालाल अपने माता-पिता की हाल में लगी फोटो के सामने खड़ा होकर बोला हमारे धरती के भगवान अब तो बहुत खुश होंगे,आपकी सभी इच्छाओं को मैंने पूरा कर दिया है,मेरा छोटा भाई और उसका परिवार भी आसमान छूने लगा है। हमें माफ करना और भगवान जहां भी हो बस आशीर्वाद बनाए रखना। हीरालाल की आंखों के झांकते हुए आंसूओं का बांध टूटने को बेकरार था।
देवकी, सुषमा,सुयश,जयश, परिवार के लोग खड़े थे। ड्राइवर फौजी भाई पूछे रेलवे स्टेशन चलना है। सुषमा बोली अंकल जी लालबहादुर शास्त्री एअरपोर्ट ।
अब क्या.....बांध टूट चुका था, झांकते आंसू पैतृक सोंधी-सोंधी माटी में समाने लगे थे । ऐसा क्यों ना होता, माता-पिता की ख्वाहिशों और भाई मोतीलाल और उसके बच्चों को आसमान छूने के सपने साकार कर चुके, त्याग के बाद अपमान से दबे बोझ से दबे हीरालाल और देवकी और क्या मिला भी क्या ? हां यह भी एक विडम्बना जरुरी हुई होगी दुनिया छोड़ चुके हीरालाल के माता-पिता की आत्मा जरुर रो रही होगी। अब तो हीरालाल के आश्रय में पले-बढ़े लिखे आसमान भी छूने लगे थे, उनकी गृहस्थी बसाने में हीरालाल -देवकी,बड़े पिता- माता होने का फर्ज सगे माता-पिता कर फना हुए , जिनके लिए इतना बड़ा त्याग किया उन्हीं की जबान से तमाचा मारने जैसे व्यवहार से अपमानित करते भी क्या ? हीरालाल के झांकते हुए आंसूओं के बांध टूटते ही देवकी, सुषमा,सुयश और जयश की गीली पलकें भी बरस पड़ी । सभी पैतृक गांव से विदा ले लिए बस क्या..... फौजी भाई ने कार गन्तव्य की ओर दौड़ा दी ।
इतिश्री

नन्दलाल भारती
१७/०६/२०२४











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