जीवन रेल का सफर है/नन्दलाल भारती
बाबू जीवन अपना सफर ही तो है
रेल के सफर की तरह
दौड़ते भागते रेल पकड़ो
हांफते - भागते सीढियां चढो
शरीर पीड़ित हो तो तनिक सीढ़ियों थम कर सुस्ता लो
आगे बढ़ो फुर्ती सांस भरते हुए, क्योंकि सफर है तो
पूरा करना भी है
और
उतरते ही भागों
आटो रिक्शा पकड़ने के लिए
साइकिल रिक्शा के पीछे -पीछे
टैक्सी की सवारी के लिए
ये चालक कितने शातिर
चाहते हैं निचोड़ लेना
मोबाइल और तरह तरह-तरह के एप्प की
मौजूदगी के बाद भी
ट्रेन में चाय और दूसरे खान-पान बेचने वाले
मिलावटी खाद्य सामग्री गले उतार के कर
कमाई पर फोकस करते हैं
आपके स्वास्थ्य और इंसानियत के धर्म पर नहीं
मुसाफिर तो मुसाफिर है
फिर
लौटकर आयेगा नहीं, ऐसा ही सोचते हैं
बाबू इस सफर में छलवे तो है बहुत
जिन्दगी के सफर की तरह
जहां मुश्किले मुंह बाये ताक में हैं
निगलने के लिए
ठीक वैसे ही सफ़र में भी मुश्किलें हैं
आप कितनी पाकपटुता से निपट लेते हैं
और सुरक्षित यात्रा पूरी कर लेते हैं
गठरी -मोटरी का भार उठाये
बाबू यही है जीवन की दास्तान भी
हम जिंदगी के संघर्षों को
जीवन की बाधाओं को
दुःख तकलीफों के भार को
जीवन का हिस्सा समझ कर
आगे बढ़ लेते हैं
कर्तव्य पथ को पूरा करने के लिए
बाबू यही है सफर चाहे रेल का हो
या जीवन का
सच बाबू चलना ही जीवन है कर्तव्य पथ पर
और
चलने से ही मिलती हैं मंजिलें,समझे बाबू।
नन्दलाल भारती
०९/११/२०२३
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