हमारे गांव मे वैसे हैं कई पोखर तालाब
आसपास से बहती हैं नदियां भी
हमारे गांव के पास बहती है बेसव
पहली बार हमने देखा था
और पार भी किया था चलकर
पानी था स्वच्छ निर्मल
गर्मी का महीना था बेसव सूखी थी
नाना के घर जाने के लिए.......
दूसरी बार भयावह बाढ़ थी
हमने कर लिया था दु:साहस
बीमार भैंस की जान बचाने के लिए
शराबी डाक्टर बचाऊ को बुलाने के लिये.....
एकवक्त था पानी निर्मल था,
अंजुरी भर भर पीते थे
जान गया था नदी का महात्म्य बचपन मे
क्योंकि जल ही तो जीवन है
फसल और जीवन के लिए.....
गांव के लोग खूब समझते हैं
तभी तो जल को देवता
नदी को माता कहते हैं
जंगल, जमीन और जल ही तो
जरूरी है जीवन के लिए......
बेसव नदी भी जीवन रेखा है
आदिमयुग से जीवन ही तो सींच रही है
इठलाती हुई जैसे जैसे पूरब की ओर
बढती है विराट रूप लेती जाती है
समन्दर मे समाने के लिए.......
नदियां अमृत जलदायिनी हैं
नदियां रोटी, कपड़ा, मकान है
तीर्थ, पुण्य धाम है
नदियों मे बहता है बसता है जीवन
नदियों मे स्वच्छ जल का बहना
जीवन की गारण्टी है
नदियां हमारे लिए है,बहती
हम भी तो जीयें नदियों के लिए......
बदलते युग मे तब्दील की जा रही है नदियां
गटर नाले के रुप मे
नदियों की सफाई के सारे कर्मकांड
कोरे साबित हो रहे हैं
थक कर कराहने लगी हैं नदियां
शहर की गंदगी और कर्मकाण्डों की
लाशें ढोते ढोते
सोचे-समझे,दायित्व निर्वहन करें
नदियों के जीवन के लिए....
नदियां नहीं मानती हैं कोई जाति- धर्म
चाहे बेसव हो,गंगा जमुना, नर्मदा या
और कोई
करती रहती हैं परमार्थ
नदियां बहती हैं, जल,जमीन जंगल
और जीवन के लिए
क्यों न हम निकले अब
नदियों के जीवन के लिए....
डॉ नन्दलाल भारती
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