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जीवन की अमर दास्तान

 
जीवन की अमर दास्तान 

ना कह पगले दिल की दास्तान
गढ़ता रह तू अपनी पहचान
जमाने के लोग,
कहां अपने होते हैं
मतलबवश साथ होते हैं
बस सकूं को गले लगा
ना तुम्हारी तरफ हाथ बढ़ने वाला
तू जिन्दा है तेजाब के दरिया के जीवन में
यह कम नहीं है,
भले ही कोई अपना , तेरा तिरस्कार करें
तू बिती बिसार  उसूल पर खड़े रहना
ना कर किसी अपने से अब उम्मीद
क्या मिला तुम्हें, तुम्हारी जहां में
कर दिया त्याग जीवन का उद्देश्य अपने
सजा अपनों के सपने, 
ना थामने को तैयार अंगुली
बढ़ती उम्र में, चिंता का बोझ बढ़ा अपना
बची हुई उम्र का सींच सपना,
क्या हाथ लगा सोचना फुर्सत में 
हुआ तो है नाउम्मीद अभी तक 
खुद पर यकीन कर 
खुद पर कर विश्वास
खुद से कर प्यार अब
यही करा देगा पार मझधार
भूला दे सब
माया की नगरी है
माया के बाजार में रंग बदल लेते हैं सभी
दर्द अपना खुद पीया कर
मौज में जीया कर
जिन्दा रहने की दवाई है यही
ना कह पगले दिल की दास्तान
कुछ काम कर नेक, गढ़ दे पहचान अपनी
विश्वास तोड़ने वाले, खंजर उतारने वाले
कर ले कबूल अपनी गुनाहो को एक दिन
जहां में तू रहे या ना रहे बची रहे तेरी पहचान
यही होगी तुम्हारे जीवन की अमर दास्तान।
नन्दलाल भारती
२२/११/२०२३

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