कैद मुकदर की जमानत पर
लम्हा-लम्हा रिस रहा है ,
बेदाग़ सी ज़िन्दगी पर ,
दरारों का ,दाग लग रहा है ,
आबरू पर कुर्बान
फरेब बेआबरू कर रहा है ,
विषबेल चढ़ चुकी सिर पर
आदमी लकीर खींच रहा है........
डॉ नन्द लाल भारती
Powered by Froala Editor
कैद मुकदर की जमानत पर
लम्हा-लम्हा रिस रहा है ,
बेदाग़ सी ज़िन्दगी पर ,
दरारों का ,दाग लग रहा है ,
आबरू पर कुर्बान
फरेब बेआबरू कर रहा है ,
विषबेल चढ़ चुकी सिर पर
आदमी लकीर खींच रहा है........
डॉ नन्द लाल भारती
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY