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Dr. Srimati Tara Singh
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कलयुग का भाई

 

लघुकथा :कलयुग का भाई

अरे  प्रफुल भाई चारों तरफ रंग-ग़ुलाल उड़ रहा है l लोग रंगोत्स्व नाच-गा रहे हैं, होली का त्यौहार साल में एक दिन आता है l तू उदास बैठा सोफा तोड़ रहा हैl किस की इंतजार हैं  ? कहते हुए गिरीश भाई ने प्रफुल का चेहरा ग़ुलाल से लाल कर दिया l 

गिरीशभाई के माथे पर नीली अबीर का टिका लगाते हुए प्रफुल बोले होली मुबारक  दोस्त l

कैसी चल रही है होली गिरीश पूछे?

झकास है भाई l

बढ़िया वाह क्या बात ? भाई साहब कहा हैं गिरीश पूछे?

कौन भाई?

गांव वाले भाई साहब आये हैं ना गिरीश बोले?

ना वो भाई रहे ना वो भैय्यपन l नौकरी गई तनख्वाह गयी l मेरे पास क्या बचा है कि अब आएंगे l बेटा-बहू से के पास बीस दिन पहले आये थे,उन्हीं का इंतजार कर रहा था, अभी-अभी खबर लगी है कि वापस चले गए l

तुमसे बिना मिले गिरीश भाई बोले l

हाँ भाई  उन्हें कहाँ जरुरत है l चालीस साल से हम दोनों माँ-बाप की तरह छाँव बने रहेl बेटवा को नौकरी क्या मिली आसमान पर थूक रहे  l 

प्रफुल्ल भाई ये तरक्की की इमारत तो तुम्हारी और भाभी के त्याग से खड़ी हुई  है l तुम और भौजाई  माँ-बाप नहीं बनते तो वही गांव मक्खी मक्खी मारते l वाह रे कलयुग के भाई दीपचंद क्या सिला दिए इतने बड़े त्याग का?

नहीं भाई हम लोगों ने कुछ नहीं किया है l सब कुछ  दीपचंद भाईसाहब के बेटा-बहू  ने किया है   l

सब कुछ तुमने किया ताज बेटा बहू के सिर l घमंड बहुत बुरी बात है l लगता है भैय्यपन की दरार नई-नई पड़ी है गिरीश भाई बोले l

हाँ भाई l भैय्यपन   का जनाजा निकाल  चुके भाई साहब की नई-नई अमीरी  भी l 

जी प्रफुल्ल भाई,तभी तो मतलब निकलते ही  बैरी हो गए  गिरीश भाई बोले l

अधिकारी बेटा के बाप  दीपचंद भाई साहब को उनकी अमीरी मुबारक l   हमें हमारा त्याग-कर्म,भाई गिरीश तुमको  भी रंगों कर त्यौहार बहुत-बहुत मुबारक  I

खुश रहिये, चिंता मुक्त रहिये प्रफुल्ल भाई बहुत-बहुत शुभकामनायें l

नन्दलाल भारती

14/03/2025

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