खबर
खबर,खबर ही तो है,
सच होगी खबर,
अखबार में छपी है,
बुजुर्ग मां की लाश ,
घर में पड़ी-पड़ी सड़ गई है
बेटा डालर कमाने विदेश में है
बीबी बच्चे भी होंगे साथ में
मां की खैर कौन लेगा ?
अकेली मां तड़प -तड़पकर मर गई
मर कर सड़ भी गई,
बेटा को मां याद न आई
वही बेटा जो जय माता दी के जयकारे
गला फाड़ फाड़ कर लगाते नहीं थकते
उन्हें अपनी ही मां की खबर नहीं होती
ये कैसा वक्त आ गया है ?
बुजुर्गो का हाल,अपना नहीं ले रहा है,
क्या होगा बुढ़े मां बाप का ?
कौन उठाएगा जिम्मेदारी ?
बड़ा सवाल है ?
खबर तो अखबार में छपती रहेगी
अखबार का काम है छापना और जगाना
दूसरी खबर भी है बहू ने ससुर को मारा चाकू
बहुये हथियार उठाने लगी हैं
ये कैसे संस्कार दिए हैं मां बाप ने
जिस डाल पर बैठी है
वहीं काटने लगी है बहू
ये बहुये हिंसक क्यों होने लगी है ?
विचारणीय प्रश्न है ?
क्या यह जबाब तो नहीं
शीघ्र सम्पत्ति पर कब्जा
हिंसा में बेटा भी तो बराबर का हिस्सेदार होगा
बाप की सम्पत्ति का मालिक पहले वहीं होगा
माताओं -पिताओ के लिए,
विपत्ति का काल हो गया है आजकल
बुजुर्गो का आश्रय वृद्धाश्रम हो गया है,
ऐसी खबरें बहुत रुलाती है
जब कहती है बहू
बूढ़ा -बूढी के लिए रोटी थापने आयीं हूं क्या?
ऐसे हादशे के शिकार बुजुर्ग
तड़प-तड़प कर मर जाते है,
आंसू दबाये -दबाये
सम्भल जाओ नव जवानों,
उम्र कहां ठहरती है
एक दिन ऐसी खबर और न छपे
कर लो बन्दोबस्त
कब कौन कर दे चहारदीवारी में बंद ?
खुद उड़ जाये पंख लगाकर
कब कौन उतार दे खंजर ?
कब कौन छीन ले थाली ?
कब कौन हलक में हाथ डालकर ?
नोंच ले गुर्दा
ये खबर ही नहीं, हकीकत हो सकती है
समझ गये तो ठीक,
अखबार पढ़ाते हैं खबर,
आंख खोलने के लिए
समझे बाबू जी
अभी नहीं तो समझ लेना बाबू जी
कहीं ऐसी खबर न छपे फिर
खबर है अखबार में तो सच भी होगी।
नन्दलाल भारती
२७/१०/२०२३
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY