खिड़की
मेरी हैसियत जो आज है
आगे जा सकती थी
सच कहूं जहां मैं हूं
बना नहीं था उसके लिए
मगर प्यारे बना दिया गया
काबिल था जिसके लिए
नहीं मिला
दोष नसीब के माथे
हासिल हुआ है जो
वह संघर्ष और श्रम का है
यह भी कह सकते हो दोस्त
अजगर की हलक से निकाला है
जहां में और भी सितारे
अपने हिस्से आ सकते थे
संघर्ष और श्रम के बदौलत
पिछड़े गया दोस्त
धर्म -जाति की रस्साकसी में
अरमान लूटते रहे
मैं जिद पर अड़ा रहा
भेदभाव, जातिवाद के ओले
पड़ते रहे निरन्तर
बड़े -बड़े कुनबों से दोस्त
अपनी काबिलियत की कलम में
आंसूओं की रोशनाई बना लिया
लूढकने नहीं दिया
मोती के रूप प्रगट हैं मेरे आंसू
अपनी जहां जिसे
अपना रचना संसार कहती है
श्रम की मण्डी में
कतरे जाते रहे मेरे पंख
सी.आर.खराब कर-कर
लेजी आफिसर लिख कर दोस्त
तरक्की भले ही अवरोधित हो गई
हिस्से का आसमान छीन गया
वफादार था, हूं और रहूंगा भी
यह मेरे कुनबे की खासियत है
मुझे यह कहने में संकोच नहीं
शोषण की छाती पर बैठकर
अपनी जहां रोशन किया है
अगर ईश्वर है तो उसे पता है
नेकनीयति, समर्पण और वफादारी
अपने हिस्से का जो कुछ
हासिल कर सका मैं
उसके लिए माता-पिता
धन्यवाद के हकदार हैं
जातिवादी दुनिया के लोग
धिक्कार और बहिष्कार के
मैं एक बात समझ गया हूं
हिस्से का पाने के लिए
जंग भी जरूरी है
जंग में अकेले टूट और बिखर भी गये
पहचान तो खड़ी हो जाती है
सिला की तरह दोस्त
मैं सोचता हूं
जातिवादियों ने जो कुछ किया है
उनकी नस्ल का उन्हें तोहफा था
उसी उर्जा से ये आदमियत के दुश्मन
पीढ़ियों के भविष्य पर
लिप देते हैं कालिख
बना देते हैं जीवन विरान
विपरीत परिस्थितियों में भी
लिख दिया नसीब अपना
कर लिया पूरा सपना
लिख दिया काल के गाल पर
मजबूत हाजिरी
सच दोस्त वही वाजीगर है
कौम के आईने में छांककर
आदमी का भविष्य तय करने वाले लोग
नरपिशाच होते हैं
ऐसे नरपिशाचो के नाम धिक्कार भेजता हूं
आखिर में दोस्त कहना चाहूंगा
जीवन से जातीय भेदभाव निकाल कर देखिए
यह बुद्ध की धरती मोहब्बतमय हो जायेगी
जीवन में सच कुछ पाना है तो
वह है मोहब्बत मोहब्बत और मोहब्बत
आदमी से आदमी की मोहब्बत ही
धरती का स्वर्ग है
और जीवन की सच्चाई भी
दोस्त जातिपंथ का त्याग करो
जीवन का सच हासिल करो
दूसरों को भी हासिल करने दो
भेद के ख्यालों की खिड़की से नही
आदमियत की खिड़की से देखा करो
नन्दलाल भारती
02/12/2022
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