कविता: कोई खबर बनी तो
बेटा तुम हमारी फिक्र में
अपनी खुशियां जाया ना करना
तुम्हारी मां को दर्द में जीने की आदत है
बाप को तड़प-तड़प कर सांस भरने की
कभी कोई खबर बनी तो,
तुम तक पहुंच जायेगी
हां अस्पताल तो तुम्हारी मां का,
आना जाना लगा रहता है
तुम्हारा बाप दवाईयों की दया पर,
सासे बरसों से भर रही है
इतना तो तुमको याद होगा तो,
तुमको पता ही होगा,
ये बूढ़े दर्द में भी तुम्हारे मंगल की,
मंगलकामनाएं करते रहते हैं
तुम्हारी मां पिछले हफ्ते,
अस्पताल गयी थी,
वापस आ गई है।
मां-बाप और उनके जीवन की
तुम्हें फिक्र भी क्यों होना चाहिए
तुमने विषैली-पत्नी के मोहपाश में
भूला दिया है सब कुछ
पत्नी के अपमान अत्याचार-शोषण
पुलिस की वसूली,
सास-ससुर की लूट आरोप अत्याचार भी
सब कुछ भूलाकर
तुम ठगों और उनकी की बेटी के,
वफादार बने हो बने रहो
मां अस्पताल के बिस्तर पर,
दर्द में तड़प तड़प
एक दिन दुनिया को भले कह दे अलविदा
चिंता की भंवर में फंसे बाप की अचानक
साथ छोड़ देगी एक दिन सांसें,
तुम फिक्र ना करना
खैर अब क्या करोगे ?
मौज उठाते रहना भ्रमण का
बने रहना विष-पत्नी के हाथों खिलौना
मां बाप की फिक्र तनिक ना करना
मां नौ माह पेट में ढोयी,
तुम्हारे मल-मूत्र धोयी पोंछी,
सौभाग्य मानकर उसी में होती,
बाप तुम्हारे सुखद भविष्य के लिए
लूटा दिया तुम पर अपना सर्वस्व
तुम फिक्र ना करना दोनों जी रहे हैं अभी
खैर तुम्हें उनकी खबर लेने की
फुर्सत कहां होगी ?
बेटा खुश रहना, बूढ़े मां बाप की अब
तुम्हें क्या जरूरत ?
बूढ़े है कि उनका मन है कि मानता ही नहीं
खैर छोड़ो बूढ़े बूढ़ी की फ़िक्र
कोई खबर बनेगी कभी तो तुम तक देर सबेर
ये हवायें पहुंचा देगी.....
पहुंचा देगी।
नन्दलाल भारती
१३/०२/२०२४
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