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कुलभूषण

 
लघुकथा: कुलभूषण
वक्तप्रसाद खुश हो या दुःखी हो या और कुछ। तुम्हारे माथे से तो मिश्रित लक्षण चमक रहे, तुम्हें सूरज कहूं या चंदा वाला गाना याद रहा है समयचन्द मुस्कराते हुए पूछे।
सुनो बर्खुरदार जो कुछ कहना है बेटे से
कह देना वक्तप्रसाद पानी का गिलास थमाते हुए बोले।
बेटा का प्रमोशन हो गया या विदेश जा रहा है समयचन्द चहकते हुए पूछे।
नहीं.....दोस्त बेटा ने प्रमोशन और विदेश दोनों को ठुकरा दिया है वक्तप्रसाद बोले।
 ऐसा क्यों किया ?  कुलभूषण ने जीवन के गोल्डन मौके को ठुकरा दिया ? आज के नवजवान विदेश में नौकरी और विदेश में बसने के लिए लालायित हैं। कुछ अभागे अपने मां -बाप को वृ़ध्दाश्रम छोड़कर जा रहे हैं। कुछ पापी तो अपने मां-बाप पानी में डूबा कर मरवा दे रहे हैं, कुछ तो सुपारी भी दे देते हैं और तुम्हारा बेटा इतने बड़े सुअवसर बड़ी को ठुकरा रहा है जो बड़ी नसीब से मिलते हैं।
ठुकरा नहीं रहा,ठुकरा दिया, त्याग पत्र दे दिया वक्तप्रसाद बोले।
वजह बता सकते हो दोस्त इतना बड़ा त्याग बेटा क्यों कर रहा है समयचन्द पूछे।
हम बूढ़े मां बाप के लिए, कहता है, मैं अपना खुद का काम करूंगा मां-बाप के साथ रहूंगा। परमात्मा बेटा की हर मुराद पूरी करें,वक्तप्रसाद प्रार्थना में हाथ जोड़ कर बोले।
जरूर पूरी होगी। परमसत्ता कुलभूषण के सपने से भी अधिक देगी समयचन्द बोले।
हे परमात्मा ऐसा ही करना, कहते वक्तप्रसाद की आंखे बरस पड़ी।
तुम रो रहे हो, तुम्हें तो जश्न मनाना चाहिए समयचन्द बोले।
ये अंतरात्मा से उपजे खुशी के आंसू हैं।
कुलभूषण के तरक्की की गूंज दुनिया तक पहुंचे समयचन्द बोले।
परमात्मा दुआये कबूल करना वक्तप्रसाद हाथ फैला दिये।
नन्दलाल भारती
०७/०१/२०२४

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