लोकतंत्र की चली हवा
अपनी जहां में
अथाह हुए
स्वाभिमान अपने
देश आज़ाद अपना
जाग उठे सारे सपने
लोकत्रंत्र हो गया साकार
देश अपना ,
अपनो की है सरकार
हाय रे निगाहें
उनकी और न गयीं
ना बदली तकदीर उनकी
हाशिये के लोग जो
टकटकी में
उम्र कम पड़ गयी
अब तो तोड़ दो
आडम्बर की सारी सरहदे
खोल दो समानता ,
हक़ -अधिकार की बंदिशे
आओ सपने
फिर से बो दे प्यारे
अपनी जहां में
निखर उठे मुकाम
लोकतंत्र में ,
बसे प्राण आस हमारे।
डॉ नन्द लाल भारती
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