मैं कैद से मुक्त होना चाहता हूं,
अपनी पहचान वापस पाना चाहता हूं
मेरी पहचान लूट गयी है,
अपनी ही जहां में,
मैं ऊंच -नीच के मुखौटे
नोंच देना चाहता हूं
मैं अपनी पहचान चाहता हूं
मैं धार्मिक-जातिवादी मुखौटा
नहीं लगाना चाहता हूं
मैं मुखौटे को अपनी पहचान
नहीं बनाना चाहता हूं
मैं मुखौटे के पीछे नहीं
अस्तित्व नहीं खोना चाहता हूं
मैं सिर्फ मैं बना रहना चाहता हूं
मैं आदमी बने रहना चाहता हूं
मैं जातिवाद की चादर में
लिपट गया तो मैं,
मैं कहां रह पाऊंगा
को जाऊंगा मुखौटाधारियो के बीच
मैं अपनी असलियत को
तरासना चाहता हूं
मैं जातिवाद धर्मवाद की,
चपेट में नहीं बहना चाहता हूं
मैं आदमी हूं,
आखिरी दिन तक
आदमी बने रहना चाहता हूं।
नन्दलाल भारती
०३/०९/२०२३
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