Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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मजबूरी

 

माँ-बाप क्या होते हैं ?
धरती के भगवान
बेटे कहां समझते हैं
माँ-बाप सब कुछ
समझ जाते हैं
कुल के उध्दारक
और भी बहुत कुछ
बेटे जो कुछ नहीं समझते
माँ बाप बेटे की
वाह-आह-सांस तक के
मर्म को समझ लेते हैं
बेटे अब माँ-बाप के
आंसू तक को नहीं समझते
माँ बाप के अरमानों का
कर देते हैं क़त्ल
जीते जी देते हैं मार
माँ-बाप क्या चाहते हैं
खुद के लिये तनिक छांव
खूब तरक़्क़ी बेटे के लिए
दृढ़ इच्छा के लिए
कभी सेतु तो कभी पहाड़
बनते रहे
कभी खुद को गिरवीं रखते हैं
सिर्फ बेटे की तरक्की के लिये
हाँ माँ-बाप की एक और
होती है ख्वाहिश अपने लिए
इसी लिए माँ बाप हर दर्द
सह लेते हैं
हर विष पी लेते हैं
वह ख्वाहिश इतनी सी है
बेटे के कंधे पर अंतिम यात्रा
इसी ख्वाहिश के लिए
सहते है, दुःख-दर्द ज़िल्लत भी
कुछ माँ बाप को यह भी
नहीं नसीब होता
पांव जमते ही कुछ निर्मोही
बेटे छोड़ देते माँ -बाप को
दुनिया छोड़ने से पहले
माँ बाप मजबूर हो जाते हैं
जी कर भी मरने के लिये ।।।।

 

 


डॉ नन्दलाल भारती

 

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