लघुकथा-मझली बहू
भाई साहब रिटायरमेंट के बाद से तो बहुत उदास रहने लगे हो, जैसे लगता है, जीने का मक़सद किसी ने छिन लिया है।सेवादास की खामोशी को तोड़ने की कोशिश करते हुए देवचरन आंखें नीची कर पूछे।
बड़ी बहू का पवरा क्या पड़ा परिवार पर तूफान आ गया,अब मंझली बहू ने परिवार में सुनामी लाकर रख दिया है, परिवार बिखर गया है, मेरी और माधुरी की तपस्या कलंकित हो गई है, भाई देवचरन जीने की इच्छा खत्म होती जा रही है। जीने का मक़सद सच लूट गया है भाई।
अपने ही गांव-मोहल्ले में क्या ? आसपास के गांवों में आपके भय्यपन की कसमें खायी जाती है,भईया आप और भौजाई के तप का ही तो प्रतिफल है कि आपका परिवार गांव में शिक्षित, सम्पन्न और संगठित परिवार है,सच आपने तो खुद के परिवार के साथ भाई वैद्यदास के परिवार को फर्श से अर्श तक ले गये। आप दो भाईयों के दो बेटी तीन बेटों के सुखी परिवार में ये कैसी विपत्ति ? वैद्यदास और लाजवंती मंझली बहू के सुनामी को कैसे बर्दाश्त कर रहे हैं।बहू के बहकावे और पुत्र मोह में वैद्यदास और लाजवंती भौजाई तो दुर्योधन और गांधारी बने बैठे हैं।
यहां तक भी तो ठीक था हम लोगों को मंझली बहू ने तो दुश्मन बना दिया है। पिता-पुत्र जैसे भय्यपन और मां-बड़ी बेटी जैसे जेठानी-देवरानी के पावन रिश्ते को उच्च शिक्षित कौवे जैसी चालाक मंझली बहू मीतू ने दूषित कर दिया है,जो लज्जा की बात है देवचरन भाई।
ये तो सेवादास भईया आप पति-पत्नी छाती पर पत्थर नहीं पूरा पहाड़ लिए जी रहे हैं? जिस भाई और उसके बच्चों को फर्श से अर्श तक पहुंचा दिए वही उपकार के बदले अपनी मंझली बहू के चक्रव्यूह में फंसकर इतना बड़ा दण्ड दे रहे हैं।
देवचरन भाई यहां तक भी तो बढ़िया था, हमारे लिए तो और दुःख की बात है कि परिवार में महाभारत खड़ा कर वैद्यदास और लाजवंती को निराश्रित छोड़कर, मीतू बिग बॉस पति मंगरुरदास के साथ बच्चा लेकर शहर फ़ुर्र हो गई। मेरे जीवन का तो बड़ा दुःख यही हो गया है । हाय रे मझली बहू।
सुनो सेवादास भईया आपको तो समझाने की मेरी औकात नहीं है,सब्र करो। अच्छे लोगों के दिन अच्छे ही रहते हैं। मेरी शिक्षित घर को मंदिर, परिवार के सदस्यों को देवता मानने वाली बहू का फोन है,लंच के लिए बुला रही है। भईया सेवादास याद रखना -वे दिन बीत गए,यह भी बीत जायेगा।
नन्दलाल भारती
१९/०७/२०२४
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